Thursday, November 24, 2011

[rti4empowerment] IPS officer claims harassment by UP govt

 

Friends,
A news about your dear old friend Amitabh in both Hindi and English. Request you to provide your kind comments.
Amitabh Thakur
# 94155-34526

http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2011-11-23/lucknow/30433187_1_writ-petition-chief-secretary-senior-bsp-leader

http://bhadas4media.com/article-comment/616-2011-11-24-01-42-29.html

http://www.youtube.com/watch?v=Mk80h7CHQ8w

Another cop accuses Mayawati administration of harassment

Ashish Tripathi, TNN Nov 23, 2011, 07.33PM IST

LUCKNOW: Amitabh Thakur, an officer of Indian Police Service posted in UP, on Wednesday filed a writ petition in the Lucknow Bench of Allahabad high court alleging harassment by senior officials.
In his petition, Amitabh has said that he is being harassed and subjected to discrimination for a very long time by Kunwar Fateh Bahadur, principal secretary (Home), Vijay Singh, secretary to the chief minister and others.
Significantly, this is the third case in last one month when senior officials in Mayawati government have been accused of harassment.
According to the petition, Amitabh was denied study leave but later allowed after intervention of court. The second instance, the petitioner alleged, is related to his suspension as Suprintendent of Police (SP), Gonda, in which the inquiry was deliberately kept pending for long by Kunwar Fateh Bahadur and was closed after Singh was removed by the Election Commission from the post of principal secretary (home) during 2007 assembly elections. Similarly, another inquiry was quashed by CAT, Lucknow. In the fourth case, Amitabh, in the petition, has said that he is also not being promoted to the rank of DIG. Instead, he said, he has been posted to a non-existent "Rules and Manuals" department which has not yet been created by the state government and the post is not permissible as per IPS (Cadre) Rules.
Amitabh has also stated in the petition that he has made number of representations to the chief minister, chief secretary, Director General of Police and other senior officials in last few years. But nothing was done.
Left with no other option, Amitabh said he has now filed the petition before the high court. He has sought a high-level inquiry in his case and has also requested that he should be suitably compensated for losses.
Earlier this month, deputy inspector general, fire services, DD Mishra, had accused senior officials including Kunwar Fateh Bahadur Singh of harassment and had alleged life threat from them. He was first forcibly taken to mental hospital where he was declared suffering from 'bipolar disorder'.
Last week, Babu Singh Kushwaha, former minister and senior BSP leader, in a letter to chief minister Mayawati, had expressed a threat to his life from some ministers and officials. In both the cases, government had denied allegations. While Mishra was declared mentally sick, Kushwaha was termed as liar. Though government has ordered an inquiry into the complaints made by Mishra, nothing has been done in Kushwaha's case.


फतेह बहादुर और विजय सिंह मुझे जान-बूझ कर परेशान कर रहे : अमिताभ

: हाईकोर्ट में याचिका दायर : खुद के साथ अन्याय के खिलाफ लगातार संघर्ष कर रहे उत्तर प्रदेश के आईपीएस अधिकरी अमिताभ फायर सर्विस के पूर्व डीआईजी डीडी मिश्रा के बाद यूपी के दूसरे ऐसे अधिकारी हो गए हैं जिन्होंने यहाँ के वरिष्ठ अधिकारियों पर प्रताड़ना और व्यक्तिगत विद्वेष का सीधा-सीधा आरोप लगाया गया है. अमिताभ ने यूपी के प्रमुख सचिव (गृह) कुंवर फ़तेह बहादुर, सचिव, मुख्यमंत्री और आईपीएस अधिकारी विजय सिंह जैसे बहुत ही ताकतवर और रसूखदार अधिकारियों पर स्वयं को एक लंबे समय से प्रताड़ित करने के आरोप लगाते हुए एक रिट याचिका इलाहाबाद उच्च न्यायालय के लखनऊ बेंच में दायर की है.
इस रिट याचिका में अमिताभ ने कई दृष्टांत दिये हैं जिनमें उन्हें इन अधिकारियों द्वारा जानबूझ कर व्यक्तिगत वैमनस्य के तहत परेशान किया जाता रहा है. इस दृष्टान्तों के अवलोकन से यह साफ़ हो जाता है कि इन्हें लगातार इन अधिकारियों द्वारा व्यक्तिगत द्वेष के कारण परेशान और प्रताडित किया जाता रहा है पर अमिताभ भी उतनी ही शिद्दत के साथ इन ताकतवर लोगों के सामने घुटने टेकने की जगह उनसे मोर्चा ले रहे हैं.
उत्तर प्रदेश में मायावती के राज्य में जिस तरह कुछेक अधिकारियों ने अपने आप को क़ानून से ऊपर कर लिया है और अन्याय और अत्याचार का पर्याय बन गए हैं उसका कोई दूसरा मिसाल मिलना आसान नहीं है. इस तरह के नंगे खेल खेलने में जिन अधिकारियों का विशेष रोल रहा है उनमे चोटी के अधिकारियों में कुंवर फ़तेह बहादुर और विजय सिंह की गिनती होती है. तभी तो स्वयं मायावती के नाक का बाल रहा और उनके सारे काले-स्याह का हमराज रहा पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा भी कुंवर फ़तेह बहादुर से खौफ्फ़ खाता है और उनसे अपने प्राणों की भीख प्रधानमंत्री से लेकर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस तक से मांगता है. ऐसे में यदि अमिताभ इतनी बड़ी ताकत का लगातार अकेले दम ना सिर्फ मुकाबला कर रहे हैं बल्कि कई बार उन्हें कानूनी लड़ाई में पटकनी भी दे चुके हैं तो इसे किसी भी तरह से मामूली बात नहीं कही जा सकती.

जिन प्रकरणों का अमिताभ ने हवाला दिया है इसमें एक प्रकरण उन्हें स्टडी लीव नहीं देने का है जिसमे कैट, लखनऊ और हाई कोर्ट में आठ मुक़दमे दायर करने के बाद उन्हें आईआईएम लखनऊ में अध्ययन हेतु दो सालों का अध्ययन अवकाश मिल सका था. इस मामले में जहां अन्य आईपीएस अधिकारियों के मामले सौ दिनों के अंदर निस्तारित किये गए थे, वहीँ अमिताभ के मामले में कई सालों तक मामले को लटकाया गया था. जहां एक ओर पुलिस भर्ती कांड में आपराधिक मुक़दमा झेल रहे बी पी जोगदंड को तत्काल विदेश जाने की अनुमति मिल गयी, वहीँ उन्हें एक विभागीय जांच के नाम पर टरकाया जाता रहा. दूसरा मामला उनके एसपी गोंडा के रूप में निलंबन से सम्बंधित है जिसमे इन अधिकारियों ने जानबूझ कर मामले को बहुत लंबे समय तक लंबित रखा था और अंत में चुनाव आयोग द्वारा कुंवर फ़तेह बहादुर को प्रमुख सचिव (गृह) पद से हटाये जाने पर मंजीत सिंह द्वारा प्रमुख सचिव (गृह) के रूप में 01 मई 2008 को न्याय करते हुए प्रकरण को तत्काल समाप्त किया गया था.
तीसरे मामले में इनके एसपी देवरिया के रूप में एक जांच के 25 मई 2007 को समाप्त हो जाने के बाद इन अधिकारियों द्वारा उसे विधि के प्रावधानों के विपरीत दुबारा दो साल बाद 26 मई 2009 को प्रारम्भ किया गया था जिसे कैट, लखनऊ ने वाद संख्या 177/2010 में 08 सितम्बर 1011 के अपने आदेश में विधिविरुद्ध पाते हुए निरस्त करने का आदेश किया था. चौथे मामले में अमिताभ को उनके विरुद्ध कोई जांच लंबित नहीं होने के बावजूद उनको इन्ही अधिकारियों की शह पर डीआईजी के पद पर नियमानुसार प्रोन्नति नहीं दी जा रही है, जबकि उनके विरुद्ध गलत ढंग से चलाया जा रहा जांच भी दो महीने पूर्व निस्तारित हो चुका है. इसी तरह उन्हें एसपी रूल्स और मैनुअल के पद पर जानबूझ कर तैनात किया गया जबकि यह अस्तित्वहीन पद है और यह विभाग शासन द्वारा अभी बना तक नहीं है. यह पद ना तो आईपीएस (पे) रूल्स, ना ही आईपीएस (कैडर) रूल्स के तहत कोई अनुमन्य पद है पर फिर भी जानबूझ कर प्रताडित करने के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश शासन के ये नुमाइंदे अपनी मर्जी से अमिताभ को इस पद पर रखे हुए हैं.

अमिताभ द्वारा अपने सभी मामलों को सामने रखते हुए उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती को 10 जून 2011 एवं 16 अगस्त 2011 को पूरी बात लिख कर बताई गयी और एक निष्पक्ष अधिकारी से उच्च-स्तरीय जांच करने की मांग की गयी. फिर उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को  04 अक्टूबर 2011 को पत्र लिख कर यही अनुरोध किया गया. प्रमुख सचिव (गृह) को  तो ना जाने कितनी ही चिठ्ठियां लिखी गयीं-15 जून 2009, 05 अगस्त 2011, 16 अगस्त 2011 एवं फिर 31 अक्टूबर 2011 को, लेकिन फ़तेह बहादुर के कान पर जूं नहीं रेंगा. आखिर उन्हें इन चिठ्ठियों का मोल भी क्या हो- इस समय तो वे सैयां भये कोतवाल अब डर काहे का वाली मानसिक अवस्था में चल रहे हैं.
उन्हें तो लगता है कि मायावती मुख्यमंत्री हैं और वे उनके खासमखास सिपहसालार, सो क़ानून उनकी मुट्ठी में है, फिर भले कोई पूर्व मंत्री अपनी हत्या की आशंका बताता रहे या कोई आईपीएस अधिकारी उनकी प्रताडनाओं को ले कर यहाँ-वहाँ शिकायत करता भटकता रहे. अमिताभ ने पुलिस महानिदेशक, उत्तर प्रदेश को भी 25 जुलाई 2011  को पत्र प्रेषित कर उनके द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच कराने और दोषी पाए गए अधिकारियों को दण्डित करने की मांग की. किन्तु अब तक इनमे से किसी पत्र का उत्तर प्रदेश शासन के अधिकारियों द्वारा कोई भी संज्ञान नहीं लिया गया और ना ही कोई भी कार्यवाही की गयी. जाहिर है ये रसूखदार लोग ऐसी चिठ्ठियों को वहीँ पड़े कूड़ेदान में फेंक कर या तो उस पर थूक दिया करते होंगे या फिर उसे फाड कर फ़ेंक दिया करते होंगे. अब क़ानून से ऊपर उठ चुके लोगों के लिए ऐसी चोटी-मोटी चिठ्ठियों का भला क्या मोल, वे तो शासक हैं और बाकी जनता उनकी गुलाम जिन्हें इन शासकों के तलवे चाट कर अपनी जिंदगी बसर करनी पड़ेगी. यदि किसी ने भी सिर उठाने की कोशिश की तो उसका वही हाल कर दिया जाएगा जो अमिताभ का किया गया- ना तो प्रोमोशन, ना छुट्टी, ना पोस्टिंग.

अब चूँकि अमिताभ भी अपनी ही एक मिट्टी के बने हैं इसीलिए वे भी अपनी ही चाल पर और अपनी ही मर्जी से चलते ही जा रहे हैं. अब उन्होंने कहीं से कुछ भी नहीं होता देख कर बाध्य हो कर हाई कोर्ट से यह गुहार लगाई है कि उनके द्वारा अपने विभिन्न पत्रों में लगाए गए आरोपों की किसी निष्पक्ष अधिकारी से समयबद्ध तरीके से जांच करा कर कुंवर फ़तेह बहादुर, विजय सिंह या किसी भी अन्य अधिकारी को दोषी पाए जाने पर नियमानुसार दण्डित किया जाए. साथ ही उन्हें जांच के बाद तमाम मानसिक और सामाजिक प्रताडना के लिए समुचित रूप से क्षतिपूर्ति दी जाई.

गुहार तो लग गयी लेकिन आगे क्या होगा, इसका तो भगवान मालिक है. पर एक बात मैं जरूर जानती हूँ कि अपनी धुन के पक्के अमिताभ भी अपने खिलाफ गलत काम करने वाले और अपने को गलत तरीके से सताने वाले इन लोगों को यूँ नहीं छोड़ेंगे चाहे इसमें उन्हें कितने ही साल क्यों ना लग जाए और इसके लिए कितनी भी मुश्किलें और तकलीफें क्यों ना झेलनी पड़े.

डॉ नूतन ठाकुर
स्वतंत्र पत्रकार
कन्वेनर, नेशनल आरटीआई फोरम
लखनऊ


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