Wednesday, January 27, 2016

[rti4empowerment] यूपी सीआइसी जावेद उस्मानी की बढ़ सकतीं हैं मुश्किलें : यूपी सीआइसी जावेद उस्मानी के खिलाफ झूंठ बोलने और धोखाधड़ी करने की एफआईआर की माँग l

 


 
 
लखनऊ/27 जनवरी 2016/ यूपी में सूचना आयुक्तों और आरटीआई एक्टिविस्टों के बीच खिंची तलवारें म्यान में बापस जाते दिखाई नहीं दे रहीं हैं l बीते 11 जनवरी को राज्यपाल से मिलकर सूचना आयुक्तों की अक्षमता और सूचना आयोग परिसर में सूचना आयुक्तों के द्वारा आरटीआई आवेदकों के उत्पीडन के आरोपों की शिकायतें अभी राजभवन पंहुचीं ही थीं कि आरटीआई आवेदकों ने नयी आरटीआई नियमावली पर सूचना आयुक्तों को घेरना शुरू कर दिया था l अब एक ताजा घटनाक्रम के तहत लखनऊ की एक आरटीआई कार्यकत्री ने लखनऊ के एक हिंदी दैनिक में छपे एक इंटरव्यू को आधार बनाकर यूपी के मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी पर जानबूझकर झूंठ बोलने और धोखाधड़ी करने का आरोप लगाते हुए थाना हजरतगंज के थानाध्यक्ष को तहरीर भेजकर उस्मानी के खिलाफ एफआईआर की माँग की है l  
 
  
लखनऊ स्थित सामाजिक संगठन येश्वर्याज सेवा संस्थान की सचिव और आरटीआई कार्यकत्री उर्वशी शर्मा ने बताया कि उत्तर प्रदेश के निवर्तमान मुख्य सचिव और वर्तमान मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी ने दैनिक जागरण को एक इंटरव्यू दिया था जो दैनिक जागरण के लखनऊ संस्करण के पेज 24 पर दिनांक 24 जनवरी 2016 में प्रकाशित हुआ था l बकौल उर्वशी इस सार्वजनिक साक्षात्कार द्वारा उस्मानी ने कई ऐसी बातें कहीं जो लोकसेवक के स्तर से कहे जाने पर आईपीसी के अंतर्गत अपराध की श्रेणी में आती हैं l उर्वशी ने बताया कि उस्मानी ने आरटीआई के तहत दंड बसूली और मुख्य सचिव के स्तर पर बनी अनुश्रवण समिति के सम्बन्ध में पूर्व में लागू आधा दर्जन शासनादेशों  को धता-बताकर विधि एवं व्यवस्था के प्रतिकूल नितांत झूंठा वक्तव्य दिया और इस प्रकार पूरे उत्तर प्रदेश की जनता को गुमराह कर धोखाधड़ी करने का संज्ञेय अपराध कारित किया l बकौल उर्वशी हालाँकि इन मामलों में इन शासनादेशों द्वारा ये व्यवस्थाएं व्यवस्था नयी आरटीआई नियमावली से पहले से ही लागू हैं पर जावेद उस्मानी ने इस सार्वजनिक इंटरव्यू द्वारा जानबूझकर ऐसा असत्य कथन किया गोया कि ये व्यवस्थाएं पहले से लागू ही नहीं थी और यह व्यवस्थाएं इस नहीं नियमावली के आने के बाद ही लागू हुईं हैं जिनसे अब बदलाव आएगा और इस प्रकार पूरे उत्तर प्रदेश की जनता को गुमराह कर उसके  साथ धोखाधड़ी करने का संज्ञेय अपराध कारित किया है l
 
  
   उर्वशी ने बताया कि उत्तर प्रदेश की सजग नागरिक होने के नाते उन्होंने बीते 25 जनवरी को लखनऊ के थाना हजरतगंज के थानाध्यक्ष को एक प्रार्थनापत्र तहरीर देकर  जावेद उस्मानी के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर उस्मानी के खिलाफ विधिक कार्यवाही करने का अनुरोध किया है l उर्वशी ने बताया कि थाने से पीली पर्ची या पावती न मिलने के कारण वे आज इस पत्र की प्रति स्पीड पोस्ट से भी थाने को भेज रहीं हैं l
 
 
 उर्वशी ने बताया कि यदि थानाध्यक्ष द्वारा इस संज्ञेय अपराध की प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज नहीं की गयी तो वे सीआरपीसी के प्राविधानों के अंतर्गत अग्रिम कार्यवाही करेंगी l

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Monday, January 25, 2016

[rti4empowerment] यूपी: सीआइसी जावेद उस्मानी के खिलाफ जानबूझकर झूंठ बोलकर घोखाधड़ी करने की धाराओं में एफआईआर की मांग [1 Attachment]

 
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मित्रों,
मैंने उत्तर प्रदेश के निवर्तमान मुख्य सचिव और वर्तमान मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी के दिनांक 24 जनवरी 2016 के दैनिक जागरण के लखनऊ संस्करण के पेज 24 पर प्रकाशित साक्षात्कार http://epaper.jagran.com/epaperimages/24012016/lucknow/23lko-pg24-0.pdf  और http://epaper.jagran.com/ePaperArticle/24-jan-2016-edition-Lucknow-page_24-20781-2480-11.html  के सन्दर्भ को आधार बनाकर उस्मानी द्वारा लोकसेवक होते हुए भी इस सार्वजनिक इंटरव्यू के माध्यम से आरटीआई के तहत दंड बसूली के सम्बन्ध में लागू शासनादेश संख्या 228/43-2-2009-15/2(3)07 लखनऊ दिनांक 20 फरवरी 2009 http://adminreform.up.nic.in/go/penalty%20head.pdf   और मुख्य सचिव के स्तर पर त्रैमासिक बैठक के सम्बन्ध में लागू शासनादेश संख्या 882/43-2-2008-15/2(3)/07 टीसी-III  लखनऊ दिनांक  7 जुलाई 2008 http://adminreform.up.nic.in/go/go10.pdf   , शासनादेश संख्या 651(1)/43-2-2010-15/2(3)/07 टीसी-III  लखनऊ दिनांक 18 मई 2010 http://adminreform.up.nic.in/go/State%20level%20committee%20for%20action%20against%20RTI.pdf  , शासनादेश संख्या 947/43-2-2011-15/2(3)/07 टीसी-III  लखनऊ दिनांक 22 नवम्बर 2011 http://adminreform.up.nic.in/go/22-11-2011.pdf  , शासनादेश संख्या 1229/43-2-2012 लखनऊ दिनांक 02 जनवरी 2013 http://adminreform.up.nic.in/go/penalty%20Committee.pdf   और शासनादेश संख्या मु०स०-9/43-2-2013 लखनऊ दिनांक 30 मई 2013 http://adminreform.up.nic.in/go/may%20thirteen%20b-001.pdf    द्वारा स्थापित विधि एवं व्यवस्था की अनदेखी करके नितांत झूंठा वक्तव्य देने का अपराध करने के साथ साथ पूरे उत्तर प्रदेश की जनता को इन मामलों में गुमराह कर धोखाधड़ी करने का संज्ञेय अपराध कारित करने का आरोप लगाया है  l
 
 
 
इन शासनादेशों द्वारा आरटीआई दंड की पीआइओ के वेतन से वसूली और आरटीआई दंड की पीआइओ के वेतन से वसूली के सम्बन्ध में मुख्य सचिव की त्रैमासिक बैठकें कराने की व्यवस्था नयी आरटीआई नियमावली से पहले से लागू होने पर भी जावेद उस्मानी ने पूरे उत्तर प्रदेश की जनता को गुमराह कर उसके  साथ धोखाधड़ी करने का संज्ञेय अपराध कारित किया है l   
 
 
 
उत्तर प्रदेश की सजग नागरिक होने के नाते मैंने प्रमाणों सहित लखनऊ के थाना हजरतगंज में बीते 25 जनवरी को एक प्रार्थनापत्र भेजते हुए अनुरोध किया है कि जावेद उस्मानी के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की जाए और उस्मानी के खिलाफ विधिक कार्यवाही भी कराई जाए  l
 
Urvashi Sharma
9369613513

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Sunday, January 24, 2016

[rti4empowerment] Re: नयी आरटीआई नियमावल

 

Urvashi Ji a very good intiative and effort on your part. I fully agree with your views. It is high time and now we should think seriously to challenge the UP RTI Rules 2015 in Hon'ble High Court if we have to save the Act from these bureurats and inexperienced Information Commissioners who ewen do not know about "A" of the Act and delivering illegal orders.
If I am not wrong one State High Court has delivered judgement that Information Commissions should deliver the judgement in 45 days as we have been demanding. 
I can give you the copy of the order when I return to India.
 
Dr. NIRAJ KUMAR C-4/8, RIVER BANK COLONY LUCKNOW - 226018 INDIA Mob.: +91+9415787095

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Posted by: NIRAJ <nirajklko@yahoo.com>
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[rti4empowerment] नयी आरटीआई नियमावली पर उत्तर प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी के नाम आरटीआई कार्यकत्री उर्वशी शर्मा का खुला पत्र l

 

 
या तो महामूर्ख या महाधूर्त और स्वार्थी हैं आरटीआई विरोधी उत्तर प्रदेश सरकार के चाटुकार मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी.
 
 
जी हाँ और मैं चाहूंगी कि मेरे ये विचार उत्तर प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी तक अवश्य पंहुचें और वे शर्म करते हुए या तो अपने पद से इस्तीफा दे दें अन्यथा अपने पद की गरिमा बनाए रखने  को मेरे ऊपर मानहानि का वाद अवश्य दायर कर दें.नहीं तो मैं यही कहूंगी कि उत्तर प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी निहायत ही स्वार्थी और बेशर्म इंसान हैं.
 
 
मुझे जावेद उस्मानी के वारे में ये टिप्पणी मजबूरी में अत्यन्त भारी मन से इसलिए करनी पड़ रही है क्योंकि जावेद उस्मानी ने दैनिक जागरण लखनऊ के उप मुख्य संवाददाता अमित मिश्र को दिए और दैनिक जागरण के लखनऊ संस्करण में पेज 24 पर आज प्रकाशित  एक साक्षात्कार( वेबलिंक  http://epaper.jagran.com/epaperimages/24012016/lucknow/23lko-pg24-0.pdf  और http://epaper.jagran.com/ePaperArticle/24-jan-2016-edition-Lucknow-page_24-20781-2480-11.html पर उपलब्ध ) में न केवल आरटीआई के वारे में अपनी अज्ञानता जाहिर की है अपितु यूपी में आरटीआई का संरक्षक होने पर भी इस संरक्षक की भूमिका से इतर सत्ता की चाटुकारिता करते हुए अपने कुतर्कों द्वारा यूपी सरकार द्वारा बनायी गयी नयी नियमावली के आरटीआई को कमजोर करने वाले,आरटीआई कार्यकर्ताओं को खतरा बढाने वाले और सूचना आयोग में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले प्राविधानों का अंधा समर्थन कर आरटीआई विरोधी कार्य किया है.  
 
जावेद उस्मानी ने राज्य सरकार को नियम बनाने का अधिकार होने की तो बात की किन्तु  अधिनियम की धारा 4(4) के अधीन प्रसारित की जाने वाली सामग्रियों की लागत या प्रिंट लागत मूल्य;धारा 6(1) के अधीन संदेय फीस; धारा 7(1) और 7(5) के अधीन संदेय फीस; धारा 13(6) और 16(6) के अधीन अधिकारियों,कर्मचारियों के वेतन,भत्ते,सेवा के निबंधन,शर्तें आदि; धारा 19(10) के अधीन अपीलों के विनिश्चय में सूचना आयोगों द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया से ही सम्बंधित नियम बना सकने और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा  अधिनियम की धारा 27 का अतिक्रमण करके अनेकों गैरकानूनी प्राविधान करके उत्तर प्रदेश सूचना का अधिकार अधिनियम नियमावली 2015 बनाने का जिक्र नहीं किया. आखिर क्यों ?
 
 
जावेद उस्मानी का यह कहना सफेद झूंठ है कि जनसूचना अधिकारियों द्वारा आरटीआई आवेदकों को सहायता पंहुचाने की बात कही जा रही है क्योंकि इस नियमावली द्वारा जनसूचना अधिकारियों द्वारा आरटीआई आवेदकों को सहायता पंहुचाने वाली आरटीआई एक्ट की धारा 5(3) , 6(1) के परंतुक और 7(4) को पूर्णतया निष्प्रभावी बना दिया गया है.
 
 
जावेद उस्मानी ने स्वयं को अत्यधिक नीचे गिराकर सफेद झूंठ बोला है कि अब तक अर्थदंड की बसूली की मानीटरिंग की कोई व्यवस्था नहीं थी और अब हर तीन माह पर इन मामलों की समीक्षा की व्यवस्था की गयी है. सत्यता तो यह है कि हमारे प्रयासों से लागू कराई गयी सूबे के मुख्य सचिव की जिम्मेदारी वाली यह व्यवस्था साल 2008 से ही लागू है http://adminreform.up.nic.in/go/go10.pdf हाँ  यह और बात है कि सता के चाटुकार उस्मानी मुख्य सचिव के रूप में भी इस जिम्मेवारी से मुंह छुपाते रहे और अब मुख्य सूचना आयुक्त बनने के बाद तो इतना नीचे गिर गए हैं कि सफेद झूंठ तक बोल रहे हैं.  
 
 
जावेद उस्मानी का यह कथन सत्य नहीं है कि सूचना आयुक्त मामलों को विधिक रूप से निस्तारित कर रहे हैं. सत्यता यह है कि वर्तमान सूचना आयुक्तों द्वारा एक भी मामले में अधिनियम की धारा 4(1)(d) के अनुसार निस्तारण नहीं हो रहा है. सूचना आयुक्त अपने फैसलों में अपने विवेक का कोई इस्तेमाल कर ही नहीं रहे हैं और यांत्रिक रीति से आयोग न आने वाले आरटीआई आवेदकों के सभी मामलों को बिना सूचना दिलाये काल्पनिक आधारों पर निस्तारित करके  पेंडेंसी कम करने की क्षद्म बात कहकर गुमराह कर रहे  है. हम सूचना आयुक्तों के निर्णयों पर इस सन्दर्भ में बहस को तैयार हैं.
 
 
 
 
जावेद उस्मानी का यह कथन सत्य नहीं है कि सूचना आयुक्त पूरी तत्परता से कार्य कर रहे हैं. सच्चाई यह है कि सूचना आयुक्त पूरे समय सुनवाई कर ही नहीं रहे है और आयोग में आरटीआई आवेदकों का घोर उत्पीडन हो रहा है. अधिकांश आयुक्त एक्ट के सन्दर्भ में अज्ञानी हैं और इनको ट्रेनिंग की आवश्यकता है. आयुक्त सरकार के एजेंट की तरह काम कर रहे है और विभाग परिवर्तित न होने के चलते  मठाधीश बन जमकर भ्रष्ट आचरण कर रहे हैं.
 
 
हम आरटीआई एक्टिविस्टों के बजूद को नकारकर उस्मानी ने हमारे प्रति अपना पूर्वाग्रह,दुराग्रह और अपनी अज्ञानता जाहिर की है. खेद है कि उस्मानी को नहीं पता है कि भारत सरकार आरटीआई का कोर्स चलाता है और मैं स्वयं भी कार्मिक और प्रशिक्षण मंत्रालय के इस ऑनलाइन कोर्स में शत-प्रतिशत अंक प्राप्त कर 'A'  ग्रेड पा चुकी हूँ. यही नहीं दिल्ली में भारत सरकार द्वारा आयोजित सूचना आयुक्तों के सम्मलेन में आरटीआई एक्टिविस्टों को भी बुलाया जाता है वह बात और है कि कभी कभी विरोध जताकर हम एक्टिविस्ट विरोधस्वरूप वहां जाने से मना कर देते हैं. यही नहीं, भारत सरकार ने यूपी सरकार को आरटीआई एक्टिविस्टों की सूची बनाने और उनकी सुरक्षा करने के भी निर्देश दिए है अलबत्ता उस्मानी मुख्य सचिव रहते भी आरटीआई एक्टिविस्टों की अनदेखी करते रहे और अब मुख्य सूचना आयुक्त बनने के बाद भी कर रहे हैं.उस्मानी अपना सामान्य ज्ञान बढ़ायें अन्यथा मुझे कहना पड़ेगा कि इस मूर्ख को किसने मुख्य सूचना आयुक्त बना दिया है.
 
 
उस्मानी को या अब तक आरटीआई एक्ट और कानून की समझ नहीं है या वे सत्ता की चाटुकारिता में जबरदस्त रूप से मदमस्त हैं तभी तो पीआईओ को बिना सुने लगाये गए जुर्माने को प्रक्रिया की कमी बता रहे है और दंड के आदेश को पलटने की बकालत कर रहे हैं. गौरतलब है कि आरटीआई एक्ट की धारा 20(1) के परंतुक के अनुसार पीआइओ पर दंड सुनवाई का युक्तयुक्त  अवसर देने के बाद ही लगाया जाता है और एक्ट में दंड बापसी का कोई भी प्राविधान नहीं है.राज्य लोक सूचना अधिकारी की अर्जी पर आयोग द्वारा पारित दण्डादेश को बापस लेना अधिनियम की धारा 19(7) और 23 के प्रतिकूल होने के साथ साथ इस स्थापित विधि के भी प्रतिकूल है कि  विधायिका द्वारा स्पष्ट अधिकार दिए बिना किसी भी न्यायिक,अर्द्ध-न्यायिक या प्रशासकीय संस्था को अपने ही आदेश का रिव्यु करना या उसे बदलना अवैध होता है lउत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग भी एक प्रशासकीय संस्था है और इस स्थापित विधि के अनुसार इसके द्वारा अपने आदेश को बदलना गैर-कानूनी है l इस नियम की ओट में सूचना आयुक्तों द्वारा लोक सूचना प्राधिकारियों के दंड के आदेशों को बापस लिया जायेगा जिसके कारण एक्ट की धारा 20 निष्प्रभावी हो जायेगी और सूचना आयोग में धीरे-धीरे भ्रष्टाचार की व्यवस्था भी पुष्ट होती जायेगी l
 
 
 
 
 
 
 
हालाँकि आरटीआई एक्ट सूचना सार्वजनिक करने का एक्ट है न कि सूचना छुपाने का और अधिनियम की धारा 4(1)(b) भी सूचना को स्वतः सार्वजनिक किये जाने पर जोर देती है पर उस्मानी द्वारा आरटीआई एक्टिविस्टों की मौतों पर सूचना सार्वजनिक करने को आचित्यहीन करार देने और आरटीआई एक्टिविस्टों की मौतों की हमारी आशंका को काल्पनिक बताने से सिद्ध हो रहा है कि जावेद उस्मानी आरटीआई एक्टिविस्टों की लाशों पर अपने स्वार्थों की सेज सजाने को तत्पर एक निहायत ही घटिया इंसान हैं जिनकी जितनी भी भर्त्सना की जाये वह कम है.  
 
 
सरकारी खर्चे पर आने वाले पीआइओ के आग्रह पर सुनवाई स्थगित करने के सरकारी कदम का समर्थन कर उस्मानी ने सिद्ध कर दिया है कि नौकरशाह अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए किसी भी हद तक गिरकर सत्ता की चाटुकारिता करेगा ही करेगा  फिर चाहें वह मामला सूचना आयोग की सुनवाइयों में आने के लिए अपने बच्चों का पेट काटकर पैसे खर्चने वाले गरीब आरटीआई आवेदकों का ही क्यों न हो.
 
 
आखिर उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग रूपी लंका के दशानन जो ठहरे ये आयुक्त जो आरटीआई रूपी सीता का बदनीयती से अपहरण कर उसे अपने इशारों पर नचाना चाहते है. पर हम भी राम हैं, यह न भूलें ये दशानन.
 
 
उम्मीद कर रही हूँ कि या तो उस्मानी अपना पद छोड़ेंगे या मुझे मानहानि का नोटिस अवश्य भेजेंगे अन्यथा ...................................................................... !
 
उर्वशी शर्मा
मोबाइल -  9369613513                                                   
 
 
 
 
 
  

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