Tuesday, December 24, 2013

[rti4empowerment] Arvind Kejriwal (poem)

 

Friends,

I present my poem on Sri Arvind Kejriwal as regards certain of my views. It is in Hindi and English (along with the weblink- http://amitabhandnutan.blogspot.in/2013/12/arvind-kejriwal-poem.html ). Some of u would like its content for ur own various reasons.

Arvind Kejriwal (Poem)

I have been accused
by many a friends
of wavering off and on
praising and denigrating
changing my stand
on the real phenomenon of today-
the one and only AK,
Indian Kalashnikov
for all those Indians
who see a Nayak,
a true hero,
a saviour, a wonder kid,
and a transformer in him.

I have been condemned
I have been vilified
I have been accused
I have been laughed at
I have been scoffed
and I have been called names
right since the days
I opposed Janlokpal
to the political transformation
of the man
who has taken the Nation
by unimaginable storm.

I don't fear being maligned
I don't fear being accused
being opposed never weakens me
I like being bullied
and hence not the problem.

What really disturbs me
is whether I have been right
or I have been wrong
in evaluating Mr Kejriwal
as an individual
and an agent of agent,
particularly as regards the truthfulness,
and the genuineness.

I don't say I have the capacity
and the required acumen
to judge an historical figure
but the fact remains
that even ordinary people
can judge extraordinary ones.

Again I don't claim for once
any iota of greatness in me
and acknowledge with openness
all my limitations, my follies,
my untruth, my insincerity
to many a things in life
but even these deficiencies
not bar a person
from evaluating others.

Now coming to the core issue
about my allegedly wavering
about my opinion on Mr K,
I make it very clear
never for once I doubted
his enormous potential
his limitless thinking
his huge risk-taking capabilities
his wonderful self-confidence
his extraordinary work potential
his incomparable zeal
and his ways of
making his presence felt.

The only thing that I don't know
even till date
is about the genuineness of Mr K,
the inherent reality
the truth behind the mask
the actual self
and it is on this issue
I, who know him only remotely,
have been getting
very contradictory statements.

While there are his followers
and there are his "disciples"
there are his fans
and there are ones
who pin their hopes
on Mr Arvind Kejriwal
to whom he is
the epitome of virtue
the ultimate man
Gandhi, Nehru, Tagore
Vivekananda, Patel et al
all rolled in one.

There are his opponents
who call him a cheat
who call him a thug
who openly blame him
who openly call him names.

To me both of them
don't exactly count
because they rely on hearsay
and the outside vibes.

The problem with me
is that
a few people
whom I regard
and take their words seriously
as being sensitive
and being sensible
are not convinced by him
while a few others
again equally sensitive
and equally sensible
rate him very high
while I personally
over the period
have seen him
change his stance
quite too often
in public life
and have seen him
making such promises
I find hugely unrealistic
often blatantly false
right from the days
he said Janlokpal
is the cure of all
which for sure
was an utter lie
again his habit
of dividing people
into black and white
painting others blacks
and rating himself
so high and so pure
as if whiter than snow
and these facets
seems to dwindle my faith
because fundamentals count
while at the same time
I want from my heart
that this man
who has churned the skies
actually proves to be true
to all his words.

Hence these wavering stands
for which I don't apologize
because to err is human
and human I am.



अरविन्द केजरीवाल (कविता)

आरोपित किया गया हूँ
कई मित्रों द्वारा
अपने बदलते सुर पर 
कभी तारीफ़, कभी निंदा
अपना मत बदलने के लिए  
आज के समय के अनोखा व्यक्तित्व पर
एक और सिर्फ एक-एके ,
अर्थात भारतीय कलाशनिकोव 
उन सभी भारतियों का 
जो देखते उसमे नायक 
एक वास्तविक हीरो 
एक रखवाला, एक अद्भुत व्यक्ति
और इस देश को बदलने वाला.

मुझे गरियाया गया
मेरी निंदा की गयी
मुझे आरोपित किया गया
मुझ पर हंसा गया
मुझे चुप कराया गया
और बहुत कुछ कहा गया
ठीक उस दिन से
मैंने जब विरोध किया
जनलोकपाल का
और तब से अब जब
हुआ राजनैतिक चोला-बदल
उस व्यक्ति का
जिन्होंने पूरे देश को
चकित कर रखा है.

मैं डरता नहीं गरियाये जाने से
मैं भला-बुरा को बुरा नहीं मानता
विरोध किये जाने से पीछे नहीं हटता
मैं आँखें दिखने पर खुश होता हूँ
इसीलिए यह कोई समस्या नहीं है.

जो बात मुझे बहुत परेशान करती
कि क्या मैं सही रहा हूँ
अथवा गलत हूँ मैं
श्री केजरीवाल के विश्लेषण में
एक व्यक्ति के रूप में
युग-परिवर्तक की कथित भूमिका में
उनकी सत्यता को लेकर
और इस रूप में उनकी ईमानदारी पर.

मैं नहीं कहता मुझमे है क्षमता
और उतनी बुद्धि
आंक सकूँ एक ऐतिहासिक व्यक्ति को
पर यह भी कृपया जानें
कि साधारण व्यक्ति भी
महान व्यक्तियों के जज हो सकते.

पुनः एक बार भी नहीं कहता
मुझमे अंशमात्र भी महानता
खुलेआम स्वीकारता हूँ मैं
अपनी समस्त कमियों, बुराईयों को
अपने झूठ को, अपने फरेब को
कई-कई चीज़ों के प्रति
लेकिन ये कमजोरियां भी
रोक नहीं सकती हैं
दुसरे के आकलन से.

अब मूल प्रश्न पर आते हैं-
मेरे कथित चंचल सोच पर
एके के प्रति मेरी टिप्पणी पर
मैं स्पष्ट करना चाहूँगा
एक बार भी शंका नहीं
उनकी अद्भुत क्षमता पर
उनकी असीम सोच पर
रिस्क लेने की ताकत पर
उनके आत्मविश्वास पर
कार्य के प्रति लगन पर
उनके शानदार उत्साह पर
और स्वयं को
उपस्थित करने की मेधा पर.

अब एक बात नहीं जानता
मैं आज की तारीख तक
वह है श्री के की आतंरिक सत्यता,
अंतरतम की बात
चेहरे के पीछे का सच
वह असल आदमी
और यही वह बिंदु
जिसपर मैं, जो उन्हें दूर से ही जानता
पा रहा हूँ अनवरत
विरोधाभाषी वक्तव्य.

एक तरह उनके समर्थक
और अब उनके "शिष्य"
उनके तमाम चाहने वाले
और वे सभी लोग
उन्निदें हैं जिनकी टिकी
श्री अरविंद केजरीवाल पर
जो उन्हें मानते
शुद्ध हीरा
युगान्तकारी व्यक्तित्व
गाँधी, नेहरु, टैगोर,
विवेकानंद, पटेल आदि
का अद्भुत सम्मिश्रण.

दुसरे तरफ उनके विरोधी
कहते जो उन्हें धूर्त
कहते जो उन्हें ठग
खुलेआम करते आरोपित
और देते हैं गालियाँ.

 मेरे लिए वे दोनों
बहुत मतलब नहीं रखते
वे अपने बंधनों से जकडे
मुक्त चिंतन नहीं कर सकते.

मेरी दिक्कत यह कि
वे कुछ लोग
जिनकी मैं करता इज्जत
और लेता उन्हें गंभीरता से
एक संवेदनशील व्यक्ति
एक संजीदा आदमी के रूप में
बहुत अच्छे नहीं रखते विचार
जबकि दूसरी ओर
उतने ही संवेदनशील
उनते ही संजीदा लोग
मानते उन्हें बहुत अच्छा
जबकि मैंने स्वयं
इस समयावधि में
देखा है उन्हें
बदलते हुए अपनी बातें
कई-कई बार
सार्वजनिक जीवन में
और देखा है
करते हुए ऐसे वाडे
मुझे लगते असत्य
हवा-हवाई, लुभावने
उस समय से
जब उन्होंने कहा
जनलोकपाल है समाधान
सभी बीमारियों का
जो था निश्चित रूप से
एक सफ़ेद झूठ
साथ ही उनकी आदत
लोगों को बांटने की
सफ़ेद और स्याह में
औरों को चोर बताना
और खुद को
इतना स्वच्छ और ऊँचा
मानो बर्फ से भी उज्जवल
और यही वे बातें
कम करतीं मेरे विश्वास को
क्योंकि बुनियादी बातों का मतलब है
जबकि इसके साथ
ह्रदय से चाहता
कि यह व्यक्ति
जिसने आसमान को झंक्झोरा
साबित हो सच्चा
अपने शब्दों के प्रति.

अतः यह ढुलमुल मत
अफ़सोस नहीं मुझे जिसका
क्योंकि गलतियाँ करता मनुष्य
और मनुष्य हूँ मैं.

Amitabh Thakur
Lucknow
# 094155-34526

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