या तो महामूर्ख या महाधूर्त और स्वार्थी हैं आरटीआई विरोधी उत्तर प्रदेश सरकार के चाटुकार मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी.
जी हाँ और मैं चाहूंगी कि मेरे ये विचार उत्तर प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी तक अवश्य पंहुचें और वे शर्म करते हुए या तो अपने पद से इस्तीफा दे दें अन्यथा अपने पद की गरिमा बनाए रखने को मेरे ऊपर मानहानि का वाद अवश्य दायर कर दें.नहीं तो मैं यही कहूंगी कि उत्तर प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी निहायत ही स्वार्थी और बेशर्म इंसान हैं.
मुझे जावेद उस्मानी के वारे में ये टिप्पणी मजबूरी में अत्यन्त भारी मन से इसलिए करनी पड़ रही है क्योंकि जावेद उस्मानी ने दैनिक जागरण लखनऊ के उप मुख्य संवाददाता अमित मिश्र को दिए और दैनिक जागरण के लखनऊ संस्करण में पेज 24 पर आज प्रकाशित एक साक्षात्कार( वेबलिंक http://epaper.jagran.com/epaperimages/24012016/lucknow/23lko-pg24-0.pdf और http://epaper.jagran.com/ePaperArticle/24-jan-2016-edition-Lucknow-page_24-20781-2480-11.html पर उपलब्ध ) में न केवल आरटीआई के वारे में अपनी अज्ञानता जाहिर की है अपितु यूपी में आरटीआई का संरक्षक होने पर भी इस संरक्षक की भूमिका से इतर सत्ता की चाटुकारिता करते हुए अपने कुतर्कों द्वारा यूपी सरकार द्वारा बनायी गयी नयी नियमावली के आरटीआई को कमजोर करने वाले,आरटीआई कार्यकर्ताओं को खतरा बढाने वाले और सूचना आयोग में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले प्राविधानों का अंधा समर्थन कर आरटीआई विरोधी कार्य किया है.
जावेद उस्मानी ने राज्य सरकार को नियम बनाने का अधिकार होने की तो बात की किन्तु अधिनियम की धारा 4(4) के अधीन प्रसारित की जाने वाली सामग्रियों की लागत या प्रिंट लागत मूल्य;धारा 6(1) के अधीन संदेय फीस; धारा 7(1) और 7(5) के अधीन संदेय फीस; धारा 13(6) और 16(6) के अधीन अधिकारियों,कर्मचारियों के वेतन,भत्ते,सेवा के निबंधन,शर्तें आदि; धारा 19(10) के अधीन अपीलों के विनिश्चय में सूचना आयोगों द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया से ही सम्बंधित नियम बना सकने और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अधिनियम की धारा 27 का अतिक्रमण करके अनेकों गैरकानूनी प्राविधान करके उत्तर प्रदेश सूचना का अधिकार अधिनियम नियमावली 2015 बनाने का जिक्र नहीं किया. आखिर क्यों ?
जावेद उस्मानी का यह कहना सफेद झूंठ है कि जनसूचना अधिकारियों द्वारा आरटीआई आवेदकों को सहायता पंहुचाने की बात कही जा रही है क्योंकि इस नियमावली द्वारा जनसूचना अधिकारियों द्वारा आरटीआई आवेदकों को सहायता पंहुचाने वाली आरटीआई एक्ट की धारा 5(3) , 6(1) के परंतुक और 7(4) को पूर्णतया निष्प्रभावी बना दिया गया है.
जावेद उस्मानी ने स्वयं को अत्यधिक नीचे गिराकर सफेद झूंठ बोला है कि अब तक अर्थदंड की बसूली की मानीटरिंग की कोई व्यवस्था नहीं थी और अब हर तीन माह पर इन मामलों की समीक्षा की व्यवस्था की गयी है. सत्यता तो यह है कि हमारे प्रयासों से लागू कराई गयी सूबे के मुख्य सचिव की जिम्मेदारी वाली यह व्यवस्था साल 2008 से ही लागू है http://adminreform.up.nic.in/go/go10.pdf हाँ यह और बात है कि सता के चाटुकार उस्मानी मुख्य सचिव के रूप में भी इस जिम्मेवारी से मुंह छुपाते रहे और अब मुख्य सूचना आयुक्त बनने के बाद तो इतना नीचे गिर गए हैं कि सफेद झूंठ तक बोल रहे हैं.
जावेद उस्मानी का यह कथन सत्य नहीं है कि सूचना आयुक्त मामलों को विधिक रूप से निस्तारित कर रहे हैं. सत्यता यह है कि वर्तमान सूचना आयुक्तों द्वारा एक भी मामले में अधिनियम की धारा 4(1)(d) के अनुसार निस्तारण नहीं हो रहा है. सूचना आयुक्त अपने फैसलों में अपने विवेक का कोई इस्तेमाल कर ही नहीं रहे हैं और यांत्रिक रीति से आयोग न आने वाले आरटीआई आवेदकों के सभी मामलों को बिना सूचना दिलाये काल्पनिक आधारों पर निस्तारित करके पेंडेंसी कम करने की क्षद्म बात कहकर गुमराह कर रहे है. हम सूचना आयुक्तों के निर्णयों पर इस सन्दर्भ में बहस को तैयार हैं.
जावेद उस्मानी का यह कथन सत्य नहीं है कि सूचना आयुक्त पूरी तत्परता से कार्य कर रहे हैं. सच्चाई यह है कि सूचना आयुक्त पूरे समय सुनवाई कर ही नहीं रहे है और आयोग में आरटीआई आवेदकों का घोर उत्पीडन हो रहा है. अधिकांश आयुक्त एक्ट के सन्दर्भ में अज्ञानी हैं और इनको ट्रेनिंग की आवश्यकता है. आयुक्त सरकार के एजेंट की तरह काम कर रहे है और विभाग परिवर्तित न होने के चलते मठाधीश बन जमकर भ्रष्ट आचरण कर रहे हैं.
हम आरटीआई एक्टिविस्टों के बजूद को नकारकर उस्मानी ने हमारे प्रति अपना पूर्वाग्रह,दुराग्रह और अपनी अज्ञानता जाहिर की है. खेद है कि उस्मानी को नहीं पता है कि भारत सरकार आरटीआई का कोर्स चलाता है और मैं स्वयं भी कार्मिक और प्रशिक्षण मंत्रालय के इस ऑनलाइन कोर्स में शत-प्रतिशत अंक प्राप्त कर 'A' ग्रेड पा चुकी हूँ. यही नहीं दिल्ली में भारत सरकार द्वारा आयोजित सूचना आयुक्तों के सम्मलेन में आरटीआई एक्टिविस्टों को भी बुलाया जाता है वह बात और है कि कभी कभी विरोध जताकर हम एक्टिविस्ट विरोधस्वरूप वहां जाने से मना कर देते हैं. यही नहीं, भारत सरकार ने यूपी सरकार को आरटीआई एक्टिविस्टों की सूची बनाने और उनकी सुरक्षा करने के भी निर्देश दिए है अलबत्ता उस्मानी मुख्य सचिव रहते भी आरटीआई एक्टिविस्टों की अनदेखी करते रहे और अब मुख्य सूचना आयुक्त बनने के बाद भी कर रहे हैं.उस्मानी अपना सामान्य ज्ञान बढ़ायें अन्यथा मुझे कहना पड़ेगा कि इस मूर्ख को किसने मुख्य सूचना आयुक्त बना दिया है.
उस्मानी को या अब तक आरटीआई एक्ट और कानून की समझ नहीं है या वे सत्ता की चाटुकारिता में जबरदस्त रूप से मदमस्त हैं तभी तो पीआईओ को बिना सुने लगाये गए जुर्माने को प्रक्रिया की कमी बता रहे है और दंड के आदेश को पलटने की बकालत कर रहे हैं. गौरतलब है कि आरटीआई एक्ट की धारा 20(1) के परंतुक के अनुसार पीआइओ पर दंड सुनवाई का युक्तयुक्त अवसर देने के बाद ही लगाया जाता है और एक्ट में दंड बापसी का कोई भी प्राविधान नहीं है.राज्य लोक सूचना अधिकारी की अर्जी पर आयोग द्वारा पारित दण्डादेश को बापस लेना अधिनियम की धारा 19(7) और 23 के प्रतिकूल होने के साथ साथ इस स्थापित विधि के भी प्रतिकूल है कि विधायिका द्वारा स्पष्ट अधिकार दिए बिना किसी भी न्यायिक,अर्द्ध-न्यायिक या प्रशासकीय संस्था को अपने ही आदेश का रिव्यु करना या उसे बदलना अवैध होता है lउत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग भी एक प्रशासकीय संस्था है और इस स्थापित विधि के अनुसार इसके द्वारा अपने आदेश को बदलना गैर-कानूनी है l इस नियम की ओट में सूचना आयुक्तों द्वारा लोक सूचना प्राधिकारियों के दंड के आदेशों को बापस लिया जायेगा जिसके कारण एक्ट की धारा 20 निष्प्रभावी हो जायेगी और सूचना आयोग में धीरे-धीरे भ्रष्टाचार की व्यवस्था भी पुष्ट होती जायेगी l
हालाँकि आरटीआई एक्ट सूचना सार्वजनिक करने का एक्ट है न कि सूचना छुपाने का और अधिनियम की धारा 4(1)(b) भी सूचना को स्वतः सार्वजनिक किये जाने पर जोर देती है पर उस्मानी द्वारा आरटीआई एक्टिविस्टों की मौतों पर सूचना सार्वजनिक करने को आचित्यहीन करार देने और आरटीआई एक्टिविस्टों की मौतों की हमारी आशंका को काल्पनिक बताने से सिद्ध हो रहा है कि जावेद उस्मानी आरटीआई एक्टिविस्टों की लाशों पर अपने स्वार्थों की सेज सजाने को तत्पर एक निहायत ही घटिया इंसान हैं जिनकी जितनी भी भर्त्सना की जाये वह कम है.
सरकारी खर्चे पर आने वाले पीआइओ के आग्रह पर सुनवाई स्थगित करने के सरकारी कदम का समर्थन कर उस्मानी ने सिद्ध कर दिया है कि नौकरशाह अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए किसी भी हद तक गिरकर सत्ता की चाटुकारिता करेगा ही करेगा फिर चाहें वह मामला सूचना आयोग की सुनवाइयों में आने के लिए अपने बच्चों का पेट काटकर पैसे खर्चने वाले गरीब आरटीआई आवेदकों का ही क्यों न हो.
आखिर उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग रूपी लंका के दशानन जो ठहरे ये आयुक्त जो आरटीआई रूपी सीता का बदनीयती से अपहरण कर उसे अपने इशारों पर नचाना चाहते है. पर हम भी राम हैं, यह न भूलें ये दशानन.
उम्मीद कर रही हूँ कि या तो उस्मानी अपना पद छोड़ेंगे या मुझे मानहानि का नोटिस अवश्य भेजेंगे अन्यथा ...................................................................... !
उर्वशी शर्मा
मोबाइल - 9369613513
__._,_.___
Posted by: urvashi sharma <rtimahilamanchup@yahoo.co.in>
Reply via web post | • | Reply to sender | • | Reply to group | • | Start a New Topic | • | Messages in this topic (1) |
.
__,_._,___
Nintendo eShop goft card codes a free way to get codes. Don't forget to visit this link this is a limited opportunity
ReplyDelete