[Attachment(s) from urvashi sharma included below]
YAISHWARYAJ Seva Sansthan 102,Narayan Tower,Opposite F Block Idgah ,Rajajipuram , Lucknow- 226017
Contact : +919369613513, +919305463313
(Registration No. 1074-2011-2012)
Ref. No: YSS/2015-16/ 20160112/प्रेस नोट Date :12th January 2016
लखनऊ/12-01-16/ कल शाम यूपी के राज्यपाल राम नाईक ने सामाजिक संगठन येश्वर्याज सेवा संस्थान की सचिव उर्वशी शर्मा के नेतृत्व में गए प्रतिनिधिमंडल से यूपी के आरटीआई कार्यकर्ताओं की समस्याओं पर विस्तार से चर्चा की और सीएम अखिलेश से वार्ता कर आरटीआई कार्यकर्ताओं की समस्याओं के समाधान का आश्वासन भी दिया.
येश्वर्याज की सचिव और सामाजिक व आरटीआई कार्यकत्री उर्वशी शर्मा ने बताया कि उनके प्रतिनिधिमंडल के एक सदस्य आरटीआई कार्यकर्ता तनवीर अहमद सिद्दीकी को राज्य सूचना आयुक्त अरविन्द सिंह बिष्ट द्वारा पुलिस के माध्यम से बंधक बनबा लिए जाने के कारण वे राजभवन नहीं जा सके.उर्वशी ने बताया कि उनके संगठन द्वारा इस सम्बन्ध में राज्यपाल को लिखित शिकायत देने पर राजभवन के हस्तक्षेप के बाद ही तनवीर को देर शाम पुलिस की अवैध हिरासत से छोड़ा गया. उर्वशी ने बताया कि आरटीआई कार्यकर्ता आज फिर हजरतगंज कोतवाली जाकर सूचना आयुक्त के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर विधिक कार्यवाही की मांग करेंगे. बकौल उर्वशी यदि पुलिस इस मामले में एफआईआर नहीं लिखती है तो इस मामले में न्यायालय जाकर सूचना आयुक्त के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत कार्यवाही कराई जायेगी.
lउर्वशी के साथ गए प्रतिनिधिमंडल में अधिवक्ता रुवैद किदवई,पत्रकार शीबू निगम के साथ बहराइच के मृत आरटीआई कार्यकर्ता गुरु प्रसाद की पत्नी बृजरानी और पुत्र संजय भी शामिल थे. l
प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल से उत्तर प्रदेश में आरटीआई कार्यकर्ताओं के लिए सुरक्षा नीति का निर्धारण कर सुरक्षा दिलाने;आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्याओं के मामलों में स्पष्ट मुआवजा का निर्धारण कर मुआवजा दिलाने;सूचना आयुक्तों द्वारा सुनवाइयों में आरटीआई आवेदकों का उत्पीडन करने के प्रकरणों को अधिनियम की धारा 17 के तहत उच्चतम न्यायालय को संदर्भित करने;सूचना आयुक्तों द्वारा सुनवाइयों के सञ्चालन में अधिनियम के प्राविधानों से इतर कार्य करने के प्रकरण रोकने के लिए अधिनियम की धारा 15(4) के तहत 'रूल्स ऑफ़ बिज़नेस' बनवाकर लागू कराने;सूचना आयुक्तों की नियुक्तियों के लिए नियमावली बनाकर पारदर्शी प्रक्रिया से नियुक्तियां कराने तथा नयी आरटीआई नियमावली में अधिनियम की धारा 27 का अतिक्रमण कर बनाए गए अवैध नियमों को रद्द कराकर ही नियमावली लागू किये जाने के सम्बन्ध में विस्तृत वार्ता की और एक ज्ञापन के माध्यम से राज्यपाल को सूचना आयुक्तों की अक्षमता और उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग परिसर में सूचना आवेदकों के उत्पीडन के सबूत सौंपकर कार्यवाही कराने का अनुरोध किया.
उर्वशी ने बताया कि राज्यपाल ने उनके द्वारा उठाये गए सभी मुद्दों पर सीएम अखिलेश से वार्ता कर कार्यवाही कराने का आश्वासन दिया है. l
ज्ञापन की प्रति निम्नानुसार है :
सेवा में,
मा० राम नाईक
श्रीमान राज्यपाल, उत्तर प्रदेश
लखनऊ, पिन कोड – 226001
विषय : उत्तर प्रदेश में आरटीआई कार्यकर्ताओं के लिए सुरक्षा नीति का निर्धारण कर सुरक्षा दिलाने;आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्याओं के मामलों में स्पष्ट मुआवजा का निर्धारण कर मुआवजा दिलाने;सूचना आयुक्तों द्वारा सुनवाइयों में आरटीआई आवेदकों का उत्पीडन करने के प्रकरणों को अधिनियम की धारा 17 के तहत उच्चतम न्यायालय को संदर्भित करने;सूचना आयुक्तों द्वारा सुनवाइयों के सञ्चालन में अधिनियम के प्राविधानों से इतर कार्य करने के प्रकरण रोकने के लिए अधिनियम की धारा 15(4) के तहत 'रूल्स ऑफ़ बिज़नेस' बनवाकर लागू कराने;सूचना आयुक्तों की नियुक्तियों के लिए नियमावली बनाकर पारदर्शी प्रक्रिया से नियुक्तियां कराने तथा नयी आरटीआई नियमावली में अधिनियम की धारा 27 का अतिक्रमण कर बनाए गए अवैध नियमों को रद्द कराकर ही नियमावली लागू किये जाने के सम्बन्ध में l
महोदय,
येश्वर्याज सेवा संस्थान लखनऊ स्थित एक सामाजिक संगठन है जो विगत 15 वर्षों से अनेकों सामाजिक क्षेत्रों के साथ-साथ 'लोकजीवन में पारदर्शिता संवर्धन और जबाबदेही निर्धारण' के क्षेत्र में कार्यरत है l
सादर अवगत कराना है कि आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या में उत्तर प्रदेश देश में दूसरे स्थान पर है l हाल के 10 वर्षों में देश में 39 आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या हुई है और 275 कार्यकर्ताओं को हमले व अन्य तरीकों से प्रताडि़त किया गया है। हत्याओं के 6 मामले उत्तर प्रदेश से हैं । आरटीआई कार्यकर्ताओं पर जानलेवा हमलों के मामले में उत्तर प्रदेश ऐसे 25 मामलों के साथ देश में तीसरे स्थान पर है।
सूचना का अधिकार अधिनियम भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 के तहत भारत के नागरिकों को प्राप्त मूल अधिकार को क्रियान्वित करने के लिए पद्धति का निर्धारण करने वाला अधिनियम है किन्तु दुःख का विषय है कि जब जागरूक नागरिक वर्ग द्वारा इस अधिनियम का प्रयोग सरकारों के भ्रष्टाचार को रोकने और सरकारों को लोकतंत्र के प्रति उत्तरदायी बनाने के लिए किया जाता है तो आरटीआई के प्रयोग से प्रभावित पक्ष इस जागरूक नागरिक वर्ग का उत्पीडन शुरू कर देते हैं l कई मामलों में इस उत्पीडन की परिणति आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या के रूप में सामने आयी है l इन मामलों में सर्वाधिक दुर्भाग्यपूर्ण पक्ष यह है कि आरटीआई एक्ट के संरक्षक की भूमिका निभाने के लिए बनाया गया उत्तर प्रदेश का राज्य सूचना आयोग भी इन मामलों में न केवल मूकदर्शक बना रहता है अपितु भांति-भांति से आरटीआई आवेदकों का उत्पीडन भी करता रहता है l
इस मामले में बहराइच के आरटीआई कार्यकर्ता स्व० गुरु प्रसाद का प्रकरण उल्लेखनीय है जिन्होंने हत्या से कुछ दिन पूर्व 18 अप्रैल 15 को हमारी संस्था द्वारा आयोजित राष्ट्रीय आरटीआई सेमिनार में बोलते हुए उत्तर प्रदेश के राज्य सूचना आयोग को आरटीआई कार्यकर्ताओं के जीवन के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया था।
एक तरफ प्रदेश सरकार लोगों को लखनऊ बुलाकर और लोगों के घर जाकर मुआवजा दे रही है तो वहीं दूसरी ओर प्रदेश की सतारूढ़ समाजवादी पार्टी समर्थित पूर्व प्रधान द्वारा श्री गुरु प्रसाद की हत्या के बाद उनके परिवार को 25 लाख रूपया ,सरकारी योजना के तहत 1 आवास,परिवार के 1 सदस्य को सरकारी नौकरी,परिवार की सुरक्षा,मृतक की सभी आरटीआई सूचनाओं को सूचना आयोग की वेबसाइट पर सार्वजनिक करने, मृतक की लंबित शिकायतों का निपटारा समयबद्ध रूप से करने,उत्तर प्रदेश सूचना आयोग के आयुक्तों द्वारा सूचना दिलाने में देरी के मामले की जांच कराने,राज्य सरकार के अधिकारियों द्वारा मृतक की शिकायतों के मामलों के निपटारे में देरी करने के मामले की जांच कराने और एफआईआर में नामित अभियुक्तों पर रासुका की धारा तामील कराने की मांगों को पूरा कराने के लिए लखनऊ आकर 12 अक्टूबर 2015 से 14 दिन धरने पर बैठना पड़ा था l लखनऊ के जिलाधिकारी द्वारा 3 माह में कार्यवाही के आश्वाशन पर पीड़ित परिवार द्वारा धरना स्थगित किया गया था किन्तु पीड़ित परिवार अब तक राज्य सरकार की उदासीनता का शिकार है और अभावों और डर के बीच रहकर मुआवजे और सुरक्षा का इन्तजार कर रहा है l इससे राज्य सरकार की मुआवजा नीति का भेदभावपूर्ण होना स्वतः ही सिद्ध हो रहा है । आपसे अनुरोध है कि उत्तर प्रदेश में आरटीआई कार्यकर्ताओं के लिए स्पष्ट सुरक्षा नीति का निर्धारण कर सुरक्षा दिलाने और आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्याओं के मामलों में स्पष्ट मुआवजा का निर्धारण कर मुआवजा दिलाने की कार्यवाही कराने की कृपा करें l
सूचना आयुक्तों द्वारा सुनवाइयों में आरटीआई आवेदकों का उत्पीडन करने पर इन आरटीआई आवेदकों द्वारा इन प्रकरणों को अधिनियम की धारा 17 के तहत कार्यवाही हेतु आपके कार्यालय को प्रेषित किया जाता है किन्तु आपके कार्यालय द्वारा इन मामलों को जांच हेतु उच्चतम न्यायालय को संदर्भित करने के स्थान पर उत्तर प्रदेश के प्रशासनिक सुधार विभाग को प्रेषित कर दिए जाने के कारण इन मामलों पर कोई भी कार्यवाही नहीं हो पा रही है और इस कारण सूचना आयुक्तों द्वारा आरटीआई आवेदकों का उत्पीडन किये जाने की घटनाओं में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है lउत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग में आरटीआई आवेदकों के उत्पीडन के मामलों में पारदर्शिता,जबाबदेही और मानवाधिकार संरक्षण के मुद्दों पर कार्य कर रही हमारे संगठन की एक इकाई 'तहरीर' द्वारा की गयी एक शिकायत का संज्ञान लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भारत सरकार के कैबिनेट सचिव को पत्र लिखकर सूचना आयोगों में आरटीआई कायकर्ताओं के मानवाधिकारों के संरक्षण की कार्यवाही करने के लिए निर्देशित किया था जिसके आधार पर भारत सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने भारत के सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को पत्र लिखकर सूचना आयोगों में आरटीआई आवेदकों के मानवाधिकारों का संरक्षण कराने को निर्देशित किया है किन्तु उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के निर्देशों पर कोई भी कार्यवाही न किये जाने के कारण उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग में आरटीआई आवेदकों के मानवाधिकारों का उल्लंघन लगातार जारी है lकृपया उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देशित कर उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के निर्देशों का अनुपालन कराने की कृपा करें l
वर्तमान में उत्तर प्रदेश के सूचना आयुक्तों द्वारा सुनवाइयों के सञ्चालन में अधिनियम के प्राविधानों से इतर कार्य किया जा रहा है l अधिकांश सूचना आयुक्त प्रायः कार्यस्थल पर देर से आते हैं और जल्दी चले जाते है l सूचना आयुक्त बिना पूर्व सूचना के प्रायः अनुपस्थित रहते हैं जिसके कारण दूर-दराज से आने वाले आरटीआई आवेदकों को तारीख देकर उनका उत्पीडन किया जा रहा है lसूचना आयुक्तों द्वारा निर्णय पारित करने में अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है अपितु यांत्रिक रीति से अधिनियम के प्राविधानों की अनदेखी करके आदेश पारित किये जा रहे हैं l इस मामले में मुख्य सूचना आयुक्त श्री जावेद उस्मानी द्वारा आरटीआई एक्ट की धारा 6(3) का प्रयोग कराने के स्थान पर बिना सूचना दिलाये निस्तारित की गयी शिकायत संख्या एस-1/1683/सी/2014 का आदेश दिनांक 16/03/15 और सूचना आयुक्त श्री अरविन्द सिंह बिष्ट द्वारा आरटीआई एक्ट की धारा 6(2) का उल्लंघन करके आरटीआई आवेदक की व्यक्तिगत सूचना सार्वजनिक करने के दूषित उद्देश्य से आयोग की वेबसाइट पर अपलोड किये गए और आरटीआई एक्ट के अंतर्गत दायर 41 स्वतंत्र आरटीआई आवेदनों पर दायर अपीलों/शिकायतों को बिना सूचना दिलाये निस्तारित किये गए केस संख्या एस3-679/सी/2012 का आदेश दिनांक 30/07/15 उल्लेखनीय है अतः अब यह आवश्यक हो गया है कि उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग में शिकायतें और अपीलें प्राप्त करने से लेकर उनका निस्तारण होंकर आदेश आरटीआई आवेदक को देने तक की सम्पूर्ण प्रक्रिया को विनियमित करने वाली कार्यप्रणाली को पारदर्शी और जबाबदेह बनाने के लिए अधिनियम की धारा 15(4) के तहत 'रूल्स ऑफ़ बिज़नेस' बनवाकर लागू कराये जाएँ lआपसे अनुरोध है कि उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग 'रूल्स ऑफ़ बिज़नेस' बनवाकर लागू कराने की कृपा करें l
आरटीआई एक्ट की धारा 15(5) में विहित है कि सूचना आयुक्त के पद पर नियुक्त व्यक्ति व्यापक ज्ञान और अनुभव वाले समाज में प्रख्यात व्यक्ति होंगे और इन पदों पर वर्तमान में नियुक्त 9 सूचना आयुक्त राज्य सरकार के मुख्य सचिव के स्तर की सभी सुविधाओं का उपभोग कर भी रहे हैं किन्तु उत्तर प्रदेश शासन के प्रशासनिक सुधार अनुभाग-2 के पत्र संख्या 782/43-2-2015 दिनांक 16 दिसंबर 2015 द्वारा इन सभी सूचना आयुक्तों को इनसे सम्बंधित सूचनाएं सार्वजनिक किये जाने की सहमति/असहमति देने के लिए अनुस्मारक नोटिस भेजे जाने से स्पष्ट है कि ये सभी न तो पारदर्शिता के प्रति ही प्रतिबद्ध हैं और न ही विवेकशील निर्णय लेने में सक्षम हैं l अतः आपसे अनुरोध है कि सूचना आयुक्तों की नियुक्तियों के लिए नियमावली बनाकर भविष्य में पारदर्शी प्रक्रिया से सुयोग्य व्यक्तियों की ही नियुक्तियां कराने की कृपा करें l
सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 27 में विहित है कि समुचित सरकार इस अधिनियम की धारा 4(4) के अधीन प्रसारित की जाने वाली सामग्रियों की लागत या प्रिंट लागत मूल्य;धारा 6(1) के अधीन संदेय फीस; धारा 7(1) और 7(5) के अधीन संदेय फीस; धारा 13(6) और 16(6) के अधीन अधिकारियों,कर्मचारियों के वेतन,भत्ते,सेवा के निबंधन,शर्तें आदि; धारा 19(10) के अधीन अपीलों के विनिश्चय में सूचना आयोगों द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया से ही सम्बंधित नियम बना सकती है किन्तु उत्तर प्रदेश सरकार ने अधिनियम की धारा 27 का अतिक्रमण करके अनेकों गैरकानूनी प्राविधान करके उत्तर प्रदेश सूचना का अधिकार अधिनियम नियमावली 2015 बनायी है l इस सम्बन्ध में हमारे संगठन ने दिनांक 08/01/16 को महोदय को विस्तृत आपत्तियां प्रेषित कीं थीं l आपसे अनुरोध है कि उत्तर प्रदेश सूचना का अधिकार अधिनियम नियमावली 2015 द्वारा बनाए गए अवैध नियमों को रद्द कराकर ही नियमावली लागू किये जाने के सम्बन्ध में आवश्यक कार्यवाही कराने की कृपा करें l
अत्यधिक अपेक्षाओं सहित सादर प्रेषित l
भवदीया
( उर्वशी शर्मा )
सचिव
Raising and Solving (Youth-awakening , Agricultural , Industrial & unorganized sector-child-labor ,Social , Health , Women-empowerment , Atmosphere-conservation , Rehabilitation , Yoga-awakening, Anti-Corruption & Judicial ) Issues with the People ,for the People, Forever.
__._,_.___
Attachment(s) from urvashi sharma | View attachments on the web
1 of 1 Photo(s)
Posted by: urvashi sharma <rtimahilamanchup@yahoo.co.in>
Reply via web post | • | Reply to sender | • | Reply to group | • | Start a New Topic | • | Messages in this topic (1) |
.
__,_._,___
No comments:
Post a Comment