Thursday, January 7, 2016

[rti4empowerment] उत्तर प्रदेश सूचना का अधिकार नियमावली 2015 के गैरकानूनी प्राविधानों पर आपत्तियों का प्रेषण और इस नियमावली के क्रियान्वयन पर तत्काल रोक लगाकर गैरकानूनी प्राविधानों को हटाने के बाद ही नियमावली को लागू करने की मांग विषयक l [1 Attachment]

 
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Urgent : Please tell me if there are some mistakes in my demands on UP RTI Rules 2015

Respected all,

We have sent below-written letter to UP Governor, CM UP, CS UP & UP
SCIC regarding UP RTI Rules 2015.

Please tell me if there are some mistakes in my demands. Please also
send your objections to these authorities of UP on UP RTI Rules 2015.

सेवा में,
1- श्री राम नाइक
उत्तर प्रदेश के राज्यपाल
लखनऊ,उत्तर प्रदेश
"hgovup" <hgovup@gov.in>, "hgovup" <hgovup@up.nic.in>, "hgovup" <hgovup@nic.in>
2-श्री अखिलेश यादव
मुख्यमंत्री,उत्तर प्रदेश सरकार
लखनऊ,उत्तर प्रदेश "cmup" <cmup@nic.in>, "cmup" <cmup@up.nic.in>
3- श्री आलोक रंजन
मुख्य सचिव,उत्तर प्रदेश शासन
लखनऊ,उत्तर प्रदेश
"csup" <csup@nic.in>, "csup" <csup@up.nic.in>,
4- श्री जावेद उस्मानी
मुख्य सूचना आयुक्त उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग
लखनऊ,उत्तर प्रदेश
द्वारा सचिव उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग
sec.sic@up.nic.in , scic.up@up.nic.in , upsiclucknow@gmail.com


Letter No. : YSS/20160108/4/RTI Rules Dated : 08-01-2016


विषय : उत्तर प्रदेश सूचना का अधिकार नियमावली 2015 के गैरकानूनी प्राविधानों पर आपत्तियों
का प्रेषण और इस नियमावली के क्रियान्वयन पर तत्काल रोक लगाकर गैरकानूनी प्राविधानों को हटाने के बाद ही नियमावली को लागू करने की मांग विषयक l

महोदय,
येश्वर्याज सेवा संस्थान लखनऊ स्थित एक सामाजिक संगठन है जो विगत 15 वर्षों से अनेकों सामाजिक क्षेत्रों के साथ-साथ 'लोकजीवन में पारदर्शिता संवर्धन और जबाबदेही निर्धारण' के क्षेत्र में कार्यरत है l

उत्तर प्रदेश शासन के प्रशासनिक सुधार विभाग द्वारा 3 दिसम्बर 2015 को जारी की गयी उत्तर प्रदेश सूचना का अधिकार नियमावली 2015 के सन्दर्भ से अवगत कराना है कि प्रश्नगत नियमावली के अनेकों नियम आरटीआई एक्ट की प्रस्तावना में लिखित मंशा और इस अधिनियम के लिखित प्राविधानों के खिलाफ हैं और इसीलिये पारदर्शिता,जबाबदेही और मानवाधिकार संरक्षण के क्षेत्र में विगत 15 वर्षों से कार्यरत हमारा संगठन आपको अपनी निम्नलिखित आरंभिक आपत्तियां भेजकर इस नयी आरटीआई नियमावली के क्रियान्वयन पर तत्काल रोक लगाने की मांग कर रहा है :
1- नियमावली के नियम 2(ज) के द्वारा आरटीआई आवेदकों के लिए प्रारूपों का निर्धारण करना आरटीआई एक्ट की मूल मंशा के विरुद्ध है और आरटीआई एक्ट की धारा 5(3) व 6(1) के परंतुक का उल्लंघनकारी है l भारत सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने कार्यालय ज्ञाप No. 10/1/2013-IR दिनांक 06/10/2015 के द्वारा स्पष्ट किया है कि आरटीआई एक्ट के प्रयोग के लिए कोई प्रारूप-निर्धारण नहीं किया जा सकता है l
2- नियमावली के नियम 4 के अंतर्गत सूचना अभिप्राप्त करने के लिए अनुरोध को शासित करने बाले नियम 4(1), 4(2) आरटीआई एक्ट की मूल मंशा के विरुद्ध हैं और आरटीआई एक्ट की धारा 5(3) व 6(1) के परंतुक का उल्लंघनकारी होने के कारण गैरकानूनी हैं l
3- आरटीआई एक्ट सूचना दिलाने का अधिनियम है किन्तु नियमावली के नियम 4(5) के परंतुक द्वारा सूचना देने मना करने का नियम बनाया गया है जो आरटीआई एक्ट की मूल मंशा के विरुद्ध है और आरटीआई एक्ट की धारा 6(1),7(1),7(3) और 7(5) के परंतुक के साथ पठित धारा 6(3) का उल्लंघनकारी होने के कारण गैर-कानूनी है l
4- नियमावली के नियम 5 में गरीबी रेखा से नीचे रहने बाले आरटीआई आवेदकों को निःशुल्क सूचना उपलब्ध कराने का कोई भी उल्लेख न होने के कारण यह आरटीआई एक्ट की मूल मंशा के विरुद्ध है और आरटीआई एक्ट की धारा 7(5) के परंतुक का उल्लंघनकारी होने के कारण गैर-कानूनी है l
5- नियमावली का नियम 7(2)(छः) असंगत होने के कारण गैर-कानूनी है क्योंकि उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग में प्रथम अपीलीय अधिकारी के विरुद्ध नहीं अपितु जनसूचना अधिकारी के ही विरुद्ध ही स्वीकार की जा रही हैं l
6- नियमावली के नियम 9(1) में आरटीआई आवेदकों को आयोग में जबरन समन करने की व्यवस्था गैर-कानूनी है और आरटीआई एक्ट की मूल मंशा के विरुद्ध है l साथ ही साथ इसी नियमावली के नियम 9(2) के द्वारा आयोग की सुनवाइयों में राज्य लोक सूचना अधिकारी की उपस्थिति की बाध्यता समाप्त कर देने और नियम 10 के द्वारा सरकारी खर्चे पर आने वाले लोकसेवकों के अनुरोध पर सुनवाई का स्थगन प्रभावी होने से अपने पैसे खर्च कर आयोग आने वाले गरीब आरटीआई आवेदकों का वित्तीय उत्पीडन होगा l
7- नियम 9(2) के द्वारा आयोग की सुनवाइयों में राज्य लोक सूचना अधिकारी की उपस्थिति की बाध्यता समाप्त कर देना और नियम 10 के द्वारा लोकसेवकों के अनुरोध पर सुनवाई का स्थगन प्रभावी करना गैर-कानूनी है और आरटीआई एक्ट की मूल मंशा के विरुद्ध है l साथ ही साथ ऐसा करने से लोकसेवकों में आरटीआई एक्ट के अनुपालन के प्रति डर समाप्त हो जायेगा और सूचना आयोग में भी अदालतों बाली 'तारीख-पे-तारीख' वाली कार्यसंस्कृति आयेगी तथा भ्रष्ट जनसूचना अधिकारी-सूचना आयुक्त गठजोड़ मजबूत और भी होने के कारण सूचना आयोग में प्रत्येक स्तर पर भ्रष्टाचार का सिस्टम पैदा होगा और पुष्ट भी होगा l
8- नियम 11 के द्वारा राज्य लोक सूचना अधिकारी की अर्जी पर मामले को सुनवाई कर रहे आयुक्त से इतर अंतरित करने की व्यवस्था करना गैर-कानूनी है और आरटीआई एक्ट की मूल मंशा के विरुद्ध है l साथ ही साथ ऐसी व्यवस्था करने से राज्य लोक सूचना अधिकारियों द्वारा उत्तर प्रदेश के सूचना आयोग में आरटीआई एक्ट का सम्यक अनुपालन करा रहे ईमानदार सूचना आयुक्तों से अपने मामले अंतरित कराकर अपने भ्रष्ट गठजोड़ बाले सूचना आयुक्त के यहाँ पंहुचाने का कुचक्र किया जायेगा जिससे आरटीआई एक्ट का सम्यक अनुपालन करा रहे ईमानदार सूचना आयुक्तों का मनोबल गिरेगा और सूचना आयोग में धीरे-धीरे भ्रष्टाचार की व्यवस्था पुष्ट होती जायेगी l
9- नियम 12 के द्वारा राज्य लोक सूचना अधिकारी की अर्जी पर आयोग द्वारा पारित दण्डादेश को बापस लेना अधिनियम की धारा 19(7) और 23 के प्रतिकूल होने के साथ साथ इस स्थापित विधि के भी प्रतिकूल है कि विधायिका द्वारा स्पष्ट अधिकार दिए बिना किसी भी न्यायिक,अर्द्ध-न्यायिक या प्रशासकीय संस्था को अपने ही आदेश का रिव्यु करना या उसे बदलना अवैध होता है lउत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग भी एक प्रशासकीय संस्था है और इस स्थापित विधि के अनुसार इसके द्वारा अपने आदेश को बदलना गैर-कानूनी है l इस नियम की ओट में सूचना आयुक्तों द्वारा लोक सूचना प्राधिकारियों के दंड के आदेशों को बापस लिया जायेगा जिसके कारण एक्ट की धारा 20 निष्प्रभावी हो जायेगी और सूचना आयोग में धीरे-धीरे भ्रष्टाचार की व्यवस्था भी पुष्ट होती जायेगी l
10- नियम 13(1) के आरटीआई आवेदक द्वारा अपील को बापस लिए जाने की व्यवस्था की गयी है जो आरटीआई एक्ट की मूल मंशा के विरुद्ध है और आरटीआई एक्ट की धारा 7(1) का उल्लंघनकारी होने के कारण गैर-कानूनी है l साथ ही इससे अपील से सम्बंधित सूचना के प्रभावित पक्ष द्वारा आरटीआई आवेदकों को धमकाकर या प्रलोभन देकर अपील को बापस कराने की घटनाओं में बढोत्तरी होगी जिससे सही आरटीआई आवेदकों को खतरा उत्पन्न होगा और दूषित उद्देश्य से आरटीआई आवेदन लगाने बाले आरटीआई आवेदकों का एक नया वर्ग सामने आएगा जिसके कारण एक्ट कमजोर भी होगा और बदनाम भी l
11- नियम 13(3) में सूचना आवेदक की मृत्यु पर उसके समस्त आरटीआई आवेदनों पर सूचना दिलाने की कार्यवाहियां रोक देने की की व्यवस्था की गयी है जो आरटीआई एक्ट की मूल मंशा के विरुद्ध है और आरटीआई एक्ट की धारा 7(1) का उल्लंघनकारी होने के कारण गैर-कानूनी है l इस असंवैधानिक व्यवस्था कर देने के चलते अब ऊंची पंहुच बाले और रसूखदार लोकसेवकों के भ्रष्टाचार के मामलों की सूचना मांगे जाने पर आरटीआई आवेदकों की सीधे-सीधे हत्याएं की जायेंगी और यूपी में आरटीआई आवेदक अब और अधिक असुरक्षित हो गए हैं l
12- नियम 19 यूपी में दूसरी राज्यभाषा का दर्जा प्राप्त उर्दू से भेदभाव करता है और उर्दू में किये गए आरटीआई पत्राचार के हिंदी या अंग्रेजी ट्रांसलेशन को जमा करने को बाध्यकारी बनाता है l यह नियम आरटीआई एक्ट की मूल मंशा के विरुद्ध है और आरटीआई एक्ट की धारा 6(1) का उल्लंघनकारी होने के कारण गैर-कानूनी तो है ही साथ ही साथ प्रदेश की 19% मुस्लिम आबादी के साथ भेदभाव करने वाला होने के कारण अलोकतांत्रिक भी है l

उपरोक्त से स्पष्ट है कि अब तक यूपी में जनसूचना अधिकारियों और सूचना आयुक्तों के नापाक गठजोड़ के चलते आरटीआई आवेदकों को सूचना आयोग जाने पर अपमान और उत्पीडन सहने को बाध्य होना पड़ रहा था लेकिन इस नयी नियमावली के लागू होने के बाद इस एक्ट के तहत सूचना मिलना तो दूर कौड़ी हो ही जायेगी साथ ही साथ आरटीआई आवेदकों की जान और सम्मान को और भी गंभीर खतरे पैदा हो जायेंगे l

हमारा संगठन साल 2011 से ही 'सूचना का अधिकार बचाओ उत्तर प्रदेश अभियान'( यूपीसीपीआरआई ) के माध्यम से यूपी में आरटीआई एक्ट और आरटीआई आवेदकों के हित संरक्षित रखने के मुद्दों पर कार्य कर रहा है और आरटीआई आवेदकों की हत्याएं रोकने के एक उपाय के तौर पर आरटीआई आवेदकों की हत्याओं के मामलों में उनके द्वारा माँगी गयी सूचनाएं सम्बंधित विभाग और सूचना आयोग की वेबसाइट पर अपलोड कराने की मांग उठाता रहा है किन्तु अब इस नियमावली के नियम 13(3) के लागू होने से आरटीआई आवेदकों की जान को गंभीर खतरा उत्पन्न होने के मद्देनज़र ही यह पत्र आपको शीघ्रता से भेजा जा रहा है l

कृपया उपरोक्त आपत्तियों का सम्यक संज्ञान लेकर विस्तृत लोकहित में आरटीआई एक्ट की मूल मंशा और लिखित प्राविधानों के खिलाफ बनायी गयी उत्तर प्रदेश सूचना का अधिकार नियमावली 2015 के क्रियान्वयन पर तत्काल रोक लगाकर इन गैरकानूनी प्राविधानों को हटाने के बाद ही नियमावली को लागू कराने के सम्बन्ध में तत्काल कार्यवाही कराने की कृपा करें ताकि देश में आबादी के हिसाब से सबसे बड़े सूबे में आरटीआई एक्ट और आरटीआई आवेदक सुरक्षित रहे और आरटीआई आवेदक सम्मानपूर्ण ढंग से आरटीआई का प्रयोग कर सूबे में एक पारदर्शी और जबाबदेह तंत्र की स्थापना में अपना यथेष्ट योगदान देकर उत्तर प्रदेश को भ्रष्टाचार मुक्त प्रदेश बनाने के पुनीत कार्य में अपना निर्वाध सहयोग भयमुक्त वातावरण में दे सकें l

अत्यधिक अपेक्षाओं सहित सादर प्रेषित l

सादर प्रेषित l

भवदीया,

उर्वशी शर्मा
सचिव
YAISHWARYAJ Seva Sansthan
102,Narayan Tower,Opposite F Block Idgah ,Rajajipuram , Lucknow- 226017
E-Mail : rtimahilamanchup@gmail.com
Contact : +919369613513, +919305463313
(Registration No. 1074-2011-2012)

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