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प्रदेश के दूरदराज इलाकों में जब भी महिलाओं के साथ बलात्कार जैसी घटनाएं होती हैं तो उस इलाके के घरों में शौचालय न होने की बात भी सामने आती है l अब इन दूरदराज के इलाकों का तो क्या कहा जाये जब प्रदेश की राजधानी में सूबे के मुखिया की नाक के नीचे ही ऐसा अंधेर हो रहा है l दरअसल मेरी एक आरटीआई के जबाब में लखनऊ के नगर स्वास्थ्य अधिकारी ने सूचना दी है कि लखनऊ नगर निगम की सीमा मैं आधी आवादी के लिए शौचालय /मूत्रालय की कोई अलग व्यवस्था नहीं है और पुरुष और महिलाओं के शौचालय /मूत्रालय एक ही में हैं l जब सूबे की राजधानी में सूबे के मुखिया की नाक के नीचे ऐसा अंधेर है तो प्रदेश के दूरदराज इलाकों के बारे में तो मात्र कल्पना ही की जा सकती है l भइया अखिलेश प्रायः ही किसी न किसी कार्यक्रम में शिरकत करने लखनऊ के रास्तों से जाते रहते हैं पर आश्चर्य है कि आखिर क्यों उन्होंने इस दिशा में कभी सोचा ही नहीं है l अखिलेश को या तो इसकी भनक नहीं है या हमारे सीएम महिलाओं के मुद्दों के प्रति नितांत ही संवेदनहीन हैं l मेरा सबाल यह है कि आखिर कब तक महिला सुरक्षा का केवल ढोल पीटा जाता रहेगा और आखिर कब इस दिशा में कुछ ठोस कदम उठाये जायेंगे ?
लखनऊ लखनऊ एक पर्यटक स्थल होने के साथ साथ प्रदेश की राजधानी भी है जहाँ विभिन्न केंद्रीय विभागों, विभिन्न आयोगों आदि के साथ अधिकाँश सरकारी महकमों के मुख्यालय भी होने के कारण प्रायः लोग इन सरकारी विभागों से सम्बंधित कार्यों से लखनऊ आते रहते हैं l यही नहीं आये दिन होने बाली प्रतियोगी परीक्षाओं, धरना-प्रदर्शन आदि के लिए भी एक बहुत बड़ी संख्या में लोग लखनऊ आते रहते हैं l
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार लखनऊ की कुल जनसँख्या 4589838 है l ऐसे में इतनी आवादी के बीच मात्र 78 सार्वजनिक शौचालयों का होना एवं मात्र 105 सार्वजनिक मूत्रालय होना इन जनसुविधाओं की भयंकर कमी स्वतः ही उजागर कर रहा है l यद्यपि लखनऊ में अन्य जिलों से आने बाले यात्रियों का भी बोझ रहता है पर केवल आवादी के हिसाब से भी देखें तो लखनऊ में 58844 व्यक्तियों की आवादी पर 1 शौचालय और 43712 व्यक्तियों की आवादी पर 1 मूत्रालय है l ये मूत्रालय और शौचालय कितने साफ रहते हैं ये भी हम सबसे छुपा नहीं है l
पुरुषों और बालकों की तो छोड़िये, मैंने प्रायः महिलाओं और बालिकाओं को खुले में मूत्र-विसर्जन करते देखा है जो मंगल गृह पर पहुंच रही हमारी सभ्यता की संवेदनशीलता पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह होने के साथ साथ हमारी व्यवस्थाओं के खोखलेपन भी को उजागर करता है l
तो अगली बार यदि आप किसी व्यक्ति को अपने घर के बाहर मूत्र-विसर्जन करते देखें तो उसे दोष मत दीजिये l यदि आप कुछ कर सकते हैं तो इन व्यवस्थाओं के कथित व्यवस्थापकों के कान उमेठने के लिए एक जागरूक नागरिक बनिए और अपनी सामर्थ्यानुसार मुद्दा उचित मंच पर उठाईये l
आरटीआई और आरटीआई के जबाब की प्रति संलग्न है l
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Posted by: urvashi sharma <rtimahilamanchup@yahoo.co.in>
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