यह आईएएस और आईपीएस का पद ही ऐसा है कि इसके गुरूर में इन पदों पर आसीन व्यक्ति यह भूल जाते हैं कि वे भी जनता के नौकर ही हैं. ये लोकसेवक यह भूल जाते हैं कि मंत्री एक जनप्रतिनिधि होता है और उसे लोकहित के मुद्दों पर जनता की तरफ से नौकर आईएएस/आईपीएस से प्रश्न करने के असीमित अधिकार हैं और उनका तर्कसंगत जबाब देना लोकसेवक का प्रथम दायित्व.यदि लोकसेवक जनप्रतिनिधि के प्रश्नों का तर्कसंगत जबाब नहीं देना चाहता तो उसे नौकरी छोड़कर घर बैठ जाना चाहिए. संगीता काफी संघर्षों के बाद आईपीएस बनी हैं पर उनको लोकसेवक के दायित्व नहीं भूलने चाहिए थे. आखिर इन पदों पर बैठे व्यक्तियों को इतनी अधिक सुविधाएं जनसेवा के लिए मिलती हैं न कि अपने पद की हनक जनता को दिखाने को.
हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज एक इमानदार जनप्रतिनिधि माने जाते हैं और उनका फतेहाबाद एसपी संगीता कालिया से किया गया सबाल गांवों में अवैध शराब बिक्री संबंधी जैसे संवेदनशील और बृहद लोकहित के मुद्दे पर था. आखिर अवैध शराब बिक्री में स्थानीय पुलिस के सीधे-सीधे हाथ होने की बात को कौन नकार सकता है.
संगीता का यह कहना कि अपराधी जमानत पर छूटकर आते हैं और फिर शराब बेचने लगते हैं. क्या करें? वाकई निहायत ही बचकाना है. अगर अपराधी जमानत पर छूटता है तो उसका कारण भी पुलिस द्वारा कमजोर केस बनाया जाना ही है जिसकी जिम्मेवारी संगीता पर ही ठहरती है .
दूसरे संगीता का मीटिंग के दौरान ये कहना कि 'शराब का लाईसेंस तो सरकार ही देती है' फिर गलत है. अगर सरकार की लाईसेंस प्रक्रिया में दोष था तो संगीता को एक एसपी की हैसियत से समय समय पर पत्र लिखकर इस मामले में अपनी आपत्तियां दर्ज करानी थीं. उनका ये बयान दर्शा रहा था कि वे सस्ती लोकप्रियता के लिए सीधे सीधे सरकार से टकराव के मूड में थीं और एक संवेदनशील लोकसेवक के रूप में वे वे शराब बिकने से कतई भी परेशान नहीं थीं.
हाँ, सरकार ने भे इस मामले में संगीता से जबाब-तलब करने की जगह तुरंत ही संगीता का स्थानांतरण करके गलत ही किया है.
( उर्वशी शर्मा )
सामाजिक कार्यकत्री और आरटीआई एक्टिविस्ट
सचिव – येश्वर्याज सेवा संस्थान
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