"संजय बिजली राखिये; बिन बिजली सब बेकार।
बिजली बिना न चल पावे ; हो खेती ,इंडस्ट्री, ऑफिस, सरकार या घरवार।।"
क्या आपको कवि रहीमदास की पंक्तियों को बदलकर रची गयी यह रचना, जो मेरे दिल की आवाज है, सही नहीं लग रही है ? क्या आपको नहीं लगता है कि बिन बिजली खेती ,इंडस्ट्री, ऑफिस, सरकार या घरवार सब बेकार हो जाते हैं ? आवादी के हिसाब से देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में बिजली को लेकर लगभग सालभर हमेशा ही हाहाकारी स्थिति रहती है। हर साल गर्मियां आते ही हालात और भी बदतर हो जाते हैं। उद्योगपतियों से लेकर किसानों तक सभी परेशान रहते हैं और बिजली की वैकल्पिक व्यवस्था करने में ही लगे रहते हैं l पर अगर मैं आपसे कहूँ कि बिजली को लेकर उत्पन्न इस समस्या के मूल में हमारी सूबे की सरकार ही है तो क्या आप यकीन करेंगे ? शायद नहीं। पर मेरी एक आरटीआई अर्जी पर उत्तर प्रदेश विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड द्वारा मुहैया करायी गयी सूचना तो इस तरफ ही इशारा कर रही है।
Access details and scanned copy of RTI reply at http://tahririndia.blogspot.in/2015/07/8-0-29.html
दरअसल मैंने एक आरटीआई दायर कर वित्तीय वर्ष 2007 -08 से 2014 -15 तक की अवधि में यूपी में लगाये गए नए थर्मल पावर प्लान्ट और इन पर प्रदेश सरकार द्वारा किये गए पूंजीनिवेश की धनराशि के बारे में जानना चाहा था। बीते 19 जून को उत्तर प्रदेश विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड की पीपीएमएम इकाई के मुख्य अभियंता द्वारा मेरी इस आरटीआई अर्जी पर जो सूचना मुहैया करायी गयी है वह वेहद चौंकानेबाली है और विद्युत उत्पादन को लेकर प्रदेश सरकार के उदासीन रवैये को उजागर कर रही है।
मुझे दी गयी अनुसार वित्तीय वर्ष 2007 -08 से 2014 -15 तक की अवधि में यूपी में 2x250 मेगावाट की हरदुआगंज तापीय विस्तार पर 3168 करोड़, 2x250 मेगावाट की पारीछा तापीय विस्तार पर 2822.82 करोड़ और 2x250 मेगावाट की अनपरा-डी तापीय परियोजना पर 7027.40 करोड़ रुपयों का निवेश किया गया। इन परियोजनाओं हेतु लागत का 70 % वित्तीय संस्थाओं से ऋण लेकर और 30 % शासकीय अंशपूंजी से पूर्ण किया गया। इनमें 13018 करोड़ के पूंजीनिवेश से तीन नयी थर्मल पावर प्लान्ट परियोजनाओं पर काम हुआ और 30 प्रतिशत की दर से इन पर प्रदेश सरकार द्वारा मात्र 3906 करोड़ का पूंजीनिवेश किया गया।
गौरतलब है कि वित्तीय वर्ष 2007 -08 से 2014 -15 तक की 8 वर्षों की अवधि में यूपी में वित्तीय वर्षवार वित्तीय वर्ष 2007 -08 में 100911 करोड़, वित्तीय वर्ष 2008 -09 में 112472 करोड़, वित्तीय वर्ष 2009 -10 में 133596 करोड़, वित्तीय वर्ष 2010 -11 में 153199 करोड़, वित्तीय वर्ष 2011 -12 में 169000 करोड़, वित्तीय वर्ष 2012 -13 में 200110 करोड़, वित्तीय वर्ष 2013 -14 में 221201 करोड़, और वित्तीय वर्ष 2014 -15 में 259848 करोड़ का सकल बजट पारित किया गया था। इन 8 वर्षों के बजटों की कुल धनराशि 1350337 करोड़ रुपयों की है जिसके सापेक्ष इन 8 वर्षों में राज्य सरकार द्वारा विधुत उत्पादन की तापीय परियोजनाओं पर मात्र 3906 करोड़ की धनराशि व्यय की गयी है जो मात्र 0.29% है।
मेरे अनुसार इन 8 वर्षों के मुख्यमंत्रियों मुलायम सिंह यादव, मायावती और अखिलेश यादव की सरकारों द्वारा बजटों की कुल धनराशि के सापेक्ष राज्य सरकार द्वारा विधुत उत्पादन की तापीय परियोजनाओं पर मात्र 0.29% की धनराशि का यह निवेश नगण्य ही है।
ऐसे में जबकि हम सभी भलीभांति जानते है कि बिजली ही विकास का पर्याय है और पर्याप्त विद्युत ऊर्जा के बिना विकास की कल्पना करना महज सब्जबाग़ से अतिरिक्त कुछ भी नहीं है तो एक बड़ा सबाल यह भी उठता है कि आखिर किस आधार पर हमारे मुख्यमंत्री पिछले 8 सालों से हमें विकास का झूंठा सपना दिखाते चले आ रहे हैं ?
इंजीनियर संजय शर्मा ( संस्थापक अध्यक्ष - 'तहरीर' )
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Posted by: urvashi sharma <rtimahilamanchup@yahoo.co.in>
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