http://tahririndia.blogspot.in/2015/01/blog-post_84.html
भारत में मानवाधिकार संरक्षण के क्षेत्र में कार्यरत लखनऊ स्थित सामाजिक संगठन 'तहरीर' ने इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा सुरेंद्र कोली की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदलते हुए फांसी की सजा को संविधान के अनुच्छेद 21 के जीवन के अधिकार के खिलाफ करार दिये जाने,पहले जारी डेथ वारंट को भी असंवैधानिक करार दिये जाने तथा कैदी को तन्हाई में रखने को संवैधानिक अधिकारों के विपरीत
बताये जाने के निर्णय का स्वागत किया है. इस मामले में हाई कोर्ट में बीते मंगलवार को सुनवाई पूरी हुई थी और बीते बुधवार को मुख्य न्यायाधीश डॉ. डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीकेएस बघेल की खंडपीठ ने खुली अदालत में फैसला लिखाया था.
तहरीर के संस्थापक इंजीनियर संजय शर्मा ने मृत्यु दंड की सजा खत्म किये जाने की मांग की । संजय ने कहा कि दुनिया के अधिकांश देशों ने मृत्यु दंड खत्म कर दिया है और अब कुछ देशों में ही मृत्यु दंड दिया जाता है पर भारत उनमे से एक है.संजय ने कहा कि मृत्यु दंड से नहीं बल्कि जीवित रखने से ही अपराधी अपनी गलती को समझ सकता है. संजय के अनुसार सामान्यतया हम यह समझते हैं कि मृत्यु दंड उन
दूसरे व्यक्तियों को हतोत्साहित करने के लिए है जो अपराध करने को प्रवृत्त हो सकते हैं, जो दूसरे अपराधियों को अपराध करने से रोकती है पर यदि आंकड़ों पर गौर करें तो हमें मालूम हो जाएगा कि यह एक विशुद्ध गलत-फहमी है। जिन देशों में फाँसी की सजा नहीं है, वहाँ हमारे देश के मुकाबले कम अपराध होते हैं। संजय के अनुसार हमारे यहाँ भी फाँसी की सजा जिन्हें होती है उनमें से ज्यादातर
साधनहीन, गरीब लोग होते हैं, जो न्याय हासिल करने के लिए वकीलों को मोटी मोटी फीस नहीं दे सकते हैं. भारत में गरीब लोगों को मृत्यु दंड मिलता है, यह बात 1947 के बाद से अब तक प्राप्त आँकड़ों से जाहिर है. इसके विपरीत किसी समृद्ध व्यक्ति को सजा मिलती भी है तो उसे दया माफी मिल जाती है. हमारे देश में आज तक संगठित गिरोहबंद सुपारी किलर्स में से किसी एक को भी फांसी नहीं हुई है.
संजय ने बताया कि पिछले दिनों संयुक्त महासभा की मानवाधिकार समिति ने दुनिया भर में मृत्यु दंड समाप्त करने का प्रस्ताव भी पास किया था. संजय ने कहा कि जीवन को ग्रहण करना और जीवन का जाना प्राकृतिक है और राज्य द्वारा अच्छे काम के एवज में किसी के जीवन-अवधि को विस्तार नहीं दिया जा सकता है, तो बुरे काम लिए उसकी जीवन अवधि को कम या समाप्त कर देना भी न्याय संगत नहीं है. जनतंत्र की
व्यवस्था में नागरिक द्वारा प्रदत्त अधिकार और शक्ति ही मूलतः राज्य के पास होते हैं.जो अधिकार और शक्ति नागरिक के पास नहीं है वह राज्य भी धारित नहीं कर सकता है. यदि राज्य को किसी भी तरह किसी की जीवन-अवधि को कम या समाप्त कर देने का अधिकार दिया जाता है तो उस राज्य के नागरिकों के पास अपनी जीवन-अवधि को कम या समाप्त करने के निर्णय के अधिकार होना उचित हो जाता है अर्थात किसी दूसरे
को यदि किसी व्यक्ति की जीवन अवधि को कम या समाप्त करने के निर्णय के अधिकार है तो उस व्यक्ति के पास भी अपनी जीवन-अवधि को कम या समाप्त करने के निर्णय के अधिकार का होना उचित हो जाता है जो असंभव है. न्याय का बुनियादी सिद्धांत है कि यथा-संभव मनुष्य या राज्य के नियम प्रकृति के नियम स न टकराएँ। न्यायिक मौत इस बुनियादी बात के विपरीत है अतः इसे समाप्त किया ही जाना चाहिए।
Posted by: urvashi sharma <rtimahilamanchup@yahoo.co.in>
Reply via web post | • | Reply to sender | • | Reply to group | • | Start a New Topic | • | Messages in this topic (1) |
No comments:
Post a Comment