Friday, October 11, 2013

[rti4empowerment] पीपीपी में पशुवधशाला ना बाबा ना! : उप्र नगर विकास विभाग में पांच साल से धूल फांक रहा एक शासनादेश

 

पीपीपी में पशुवधशाला ना बाबा ना!

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  • Friday, 11 October 2013 06:05

उप्र नगर विकास विभाग में पांच साल से धूल फांक रहा एक शासनादेश

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में संचालित पशुवधशालाएं लम्बे समय से अनेकों समस्याओं से ग्रसित रही है| आबादी क्षेत्र में पशुवधशालाओ के संचालन से स्थानीय निवासियों को समस्याओं का सामना करना पड़ता है तो वही अवैध पशुवधशालाओ में मानकों का पालन न किये जाने के कारण पर्यावरण के साथ साथ उत्पाद की गुणवत्ता भी प्रतिकूल प्रभावित होती है | अगस्त 2008 में उत्तर प्रदेश के नगर विकास विभाग ने संसाधनों की कमी से जूझ रहे उत्तर प्रदेश के स्थानीय निकायों के स्वामित्त्व की पशुवधशालाओं का संचालन पी० पी० पी० मॉडल पर करने के संबंध में एक शासनादेश जारी किया था| यह शासनादेश पांच साल से अधिक समय से उत्तर प्रदेश शासन के नगर विकास विभाग, स्थानीय निकाय निदेशालय , नगर निगमों,नगर पालिकाओं और नगर पंचायतों की फाइलों में दफन है और इस पर आज तक कोई भी कोई अमल नहीं किया गया है|

यह चौंकाने बाला खुलासा लखनऊ निवासी समाजसेविका उर्वशी शर्मा की एक आरटीआई पर उत्तर प्रदेश शासन के नगर विकास विभाग के उपसचिव एवं जनसूचना अधिकारी उमा शंकर सिंह द्वारा दी गयी सूचना से हुआ है| उमा शंकर सिंह द्वारा दी गयी इस सूचना पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए उर्वशी ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक तरफ आई0 टी0 सिटी की स्थापना की 1500 करोड़ की कार्ययोजना का संचालन पी० पी० पी० मॉडल पर करने के संबंध में तेजी से कार्यवाही हो रही है जिसमें सरकार और निजी कम्पनियाँ अत्यधिक उत्सुकता से कार्य कर रही हैं तो वही दूसरी तरफ पशुवधशालाओं का  संचालन पी० पी० पी० मॉडल पर करने का यह प्रकरण है जिसमें पांच साल से अधिक समय से न तो  सरकार और न ही निजी कम्पनियाँ कोई रूचि ले रही हैं और कार्ययोजना का शासनादेश फाइलों में कही दबा पड़ा है|
उर्वशी कहती है कि यदि इस शासनादेश पर अमल किया गया होता तो अब तक प्रदेश की पशुवधशालाओं का निर्धारित मानकों के अनुरूप आधुनिकीकरण हो गया होता, इन पशुवधशालाओं से होने बाले जल एवं वायु प्रदूषण नियंत्रित हुए होते, पशुवधशालाओं से निकलने बाले ठोस अपशिस्ट, जनित उत्प्रवाह का मानकों के अनुसार नियंत्रण होकर पर्यावरण को होने बाली हानि कुछ हद तक संयमित हुई होती और प्रदेश की जनता को राहत मिली होती पर दुर्भाग्य से ऐसा कुछ भी नहीं हुआ|

समाजसेविका उर्वशी का कहना है कि ऐसा इसलिए है कि सरकार और निजी कम्पनियों के गठजोड़ की रूचि पी०पी०पी० मॉडल की उन्ही कार्ययोजनाओं में रहती है जिनमे निजी कंपनियों को अधिक व्यवसायिक लाभ मुख्यतः रियल एस्टेट निहित होते है l उर्वशी कहती हैं कि सरकारें जनता को भुलावे में रखने के लिए सभी क्षेत्रों में  पी० पी० पी० मॉडल की कार्ययोजनाओं की घोषणा तो करती हैं लेकिन क्रियान्वन केवल उन्ही कार्ययोजनाओं का होता है जिनमे सरकार और निजी कम्पनियों के गठजोड़ के लाभ अन्तर्निहित होते हैं| उर्वशी कहती हैं कि पशुवधशालाओं के आस पास की जमीनों की कोई अन्य व्यवसायिक उपयोगिता नहीं होने के कारण ही यह कार्य योजना अभी तक हकीकत का सूरज नहीं देख पाई है|

पी० पी० पी० मॉडल के  तहत स्वीकृत की जाने वाली कार्ययोजनाओं में पारदर्शिता लाने और जनहितकारी योजनाओं को वरीयता देने के लिए  इन कार्ययोजनाओं की स्वीकर्ता एवं क्रियान्वयन समितियों  में 'सिविल सोसाइटी' के सदस्यों को भी  सम्मिलित करने के लिए संघर्षरत इस समाजसेविका ने सरकारों से  पी० पी० पी० मॉडल की कार्ययोजनाओं को चिन्हित कर अधिक लाभकारी कार्ययोजनाओं को लेने बाली  कंपनियों पर ही कुछ कम लाभकारी कार्ययोजनाओं का दायित्व लेना भी नियमों में अन्तर्निहित किये जाने की आवश्यकता पर बल दिया|

उत्तर प्रदेश के नगर विकास मंत्री आजम खां की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए उर्वशी कहती हैं कि एक तरफ तो मंत्रीजी स्थानीय निकायों की  आर्थिक विपन्नता का हवाला देते हुए जन सुविधाओं के सवालों पर कन्नी काटते हैं वही पशुवधशालाओं का  संचालन पी० पी० पी० मॉडल पर करने के प्रकरण की फाइल पर उनका विभाग ही पांच साल से कुण्डली मारे बैठा है और सवाल उठाती हैं कि ऐसे में आखिर उत्तर प्रदेश की जनता को रहने का स्वच्छ और सुरक्षित वातावरण कैसे मिलेगा ?

खबर की श्रेणी लखनऊ
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