Two Hindi poems from my heart (मेरे ह्रदय से निकली दो कवितायें)
नसीहतें
क्यों करे रहे बर्बाद खुद को,
कितने मेधावी हो तुम,
कितना अच्छा कैरियर,
कितनी बड़ी नौकरी,
कितना सुनहरा भविष्य,
आज आईजी होते,
कल प्रदेश के डीजीपी,
परसों कहीं के राज्यपाल भी,
कितना कुछ पा सकते हो,
कितना कुछ दिया भगवान ने,
पता नहीं पागलपन का कौन दौरा,
पता नहीं क्या बेवकूफी,
पता नही क्या सनक,
पता नहीं क्या जिद,
खुद भी डूब रहे,
दूसरों को कर रहे असुरक्षित,
कहाँ से कहाँ आ गए
क्या से क्या हो गए,
अरे अब तो सुधर जाओ,
अरे अब भी तो संभल जाओ,
बहुत पछताओगे,
देर हो चुकी होगी तब,
अभी मौका है,
जिंदगी सामने खड़ी मुस्कुरा रही है,
लहरा कर ले लो,
कल खाली हाथ रह जाओगे.
एक ही रास्ता
चाहे गड्ढे में जाऊं,
चाहे बर्बाद हो जाऊं,
चाहे मिले तबाही,
चाहे कुछ हाथ ना आये,
चाहे दुनिया थूके,
चाहे अपने रूठें,
चाहे सब हंसें,
चाहे सब तुनकें,
चाहे जो मिले दंड,
चाहे कोई ना रहे संग,
चाहे होऊं तनहा,
चाहे बिलकुल अकेला,
चाहे सब खो बैठूं,
चाहे लूटा कहलाऊं,
चाहे मिट ही जाऊं,
चाहे कुछ ना पाऊं,
पहले जो किया सो किया
गलती सही जो जिया
बस अब एक है रस्ता,
"क़ानून का राज" है सपना
आपकी आतंरिक प्रतिक्रिया जानना चाहूँगा.
अमिताभ ठाकुर
लखनऊ
# 094155-34526
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